शुक्रवार, 13 मई 2011

मेरी पसंद.....


एक ज़माने में हिंदी काव्यमंचों को अपने ओजस्वी गीतों से गुंजाने वाले बलवीर सिंह रंग का जन्म शती वर्ष है ये . उनकी ये कविता सबसे पहले मैंने अनूप शुक्ल जी की "जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है " पोस्ट पर पढ़ी थी. बहुत अच्छी लगी थी. पिछले रविवार दैनिक भास्कर में उनके जन्मशती समारोहों की रपट पढ़ी, तो ये कविता फिर याद आ गई. लगा, अब इसे आप सब के साथ पढ़ा जाए-


जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।

सहसा भूली याद तुम्हारी उर में आग लगा जाती है
विरह-ताप भी मधुर मिलन के सोये मेघ जगा जाती है,
मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।

धन्य-धन्य मेरी लघुता को, जिसने तुम्हें महान बनाया,
धन्य तुम्हारी स्नेह-कृपणता, जिसने मुझे उदार बनाया,
मेरी अन्धभक्ति को केवल इतना मन्द प्रकाश बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।

अगणित शलभों के दल के दल एक ज्योति पर जल-जल मरते
एक बूँद की अभिलाषा में कोटि-कोटि चातक तप करते,
शशि के पास सुधा थोड़ी है पर चकोर की प्यास बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।

मैंने आँखें खोल देख ली है नादानी उन्मादों की
मैंने सुनी और समझी है कठिन कहानी अवसादों की,
फिर भी जीवन के पृष्ठों में पढ़ने को इतिहास बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।

ओ ! जीवन के थके पखेरू, बढ़े चलो हिम्मत मत हारो,
पंखों में भविष्य बंदी है मत अतीत की ओर निहारो,
क्या चिंता धरती यदि छूटी उड़ने को आकाश बहुत है
जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।

बलवीर सिंह "रंग"

18 टिप्‍पणियां:

  1. धन्य-धन्य मेरी लघुता को, जिसने तुम्हें महान बनाया,
    धन्य तुम्हारी स्नेह-कृपणता, जिसने मुझे उदार बनाया,
    मेरी अन्धभक्ति को केवल इतना मन्द प्रकाश बहुत है
    जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।

    क्या बात है ! बहुत सुंदर कविता ,,
    मन में विश्वास जगाती ,हिम्मत देती इस कविता के कवि को नमन और
    वन्दना बहुत बहुत धन्यवाद इस कविता को पढ़वाने के लिये

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  2. मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है
    जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है

    बहुत ही सुन्दर कविता पढवाई....कोटिशः धन्यवाद

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  3. मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है
    जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है

    हर पंक्ति सुंदर है .....यह रचना पढवाने का आभार

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  4. मन के भीतर तहों में बैठकर लिखी गयी पोस्ट।

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  5. भारतीय साहित्य की अमूल्य निधि
    हमारी अपनी धरोहर
    "रंग' जी की इस अनमोल रचना को पढवाने के लिए
    आभार स्वीकार करें .

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  6. एक श्रेष्ठ रचना पेश करने के लिए आभार वंदना जी.

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  7. इतनी गजब की रचना पढ़वाने के लिए बहुत-बहुत आभार....

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  8. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  9. मोती चुन लायी है आप . रचना धनात्मक उर्जा से ओतप्रोत और रचनाकार के लिए कुछ भी कहना जैसे सूरज को दिखाना जोत .

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  10. यह कविता मुझे भी बहुत अच्छी लगती है। जितनी बार पढ़ो, लगता है पहली बार पढ़ रहा हूं।

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  11. vandana bahut bahut sundar rachna itni achchhi lagi ki bayan mahi kar paa rahi ,ise to note kar loongi mujhe har bhav khoobsurat lage ,

    मुझको आग और पानी में रहने का अभ्यास बहुत है
    जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है
    adbhut adbhut adbhut

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  12. एक अति सुंदर रचना के लिये आप का धन्यवाद

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  13. मैंने आँखें खोल देख ली है नादानी उन्मादों की
    मैंने सुनी और समझी है कठिन कहानी अवसादों की,
    फिर भी जीवन के पृष्ठों में पढ़ने को इतिहास बहुत है
    जाने क्यों तुमसे मिलने की आशा कम, विश्वास बहुत है ।..........bahut sundar.....

    pranam.

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  14. कविता और आलेख दोनों ही अच्छे लगे। धन्यवाद!

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  15. मुझे उम्मीद है कि इस जन्मशती वर्ष में बलबीर सिंह रंग को लोग याद करेंगे ।

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  16. यह कविता बरसों पहले पढ़ी थी और बहुत पसंद है...आभार आपका !

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