मंगलवार, 13 सितंबर 2011

मेरी पसंद.....

न किसी की आँख का नूर हूँ न किसी के दिल का क़रार हूँ
जो किसी के काम न आ सके मैं वो एक मुश्त-ए-ग़ुबार हूँ


न तो मैं किसी का हबीब हूँ न तो मैं किसी का रक़ीब हूँ
जो बिगड़ गया वो नसीब हूँ जो उजड़ गया वो दयार हूँ


मेरा रंग-रूप बिगड़ गया मेरा यार मुझ से बिछड़ गया
जो चमन फ़िज़ाँ में उजड़ गया मैं उसी की फ़स्ल-ए-बहार हूँ


पढ़े फ़ातेहा कोई आये क्यूँ कोई चार फूल चढाये क्यूँ
कोई आके शम्मा जलाये क्यूँ मैं वो बेकसी का मज़ार हूँ


मैं नहीं हूँ नग़्मा-ए-जाँफ़िशाँ मुझे सुन के कोई करेगा क्या

मैं बड़े बरोग की हूँ सदा मैं बड़े दुख की पुकार हूँ


0 बहादुर शाह ज़फ़र


18 टिप्‍पणियां:

  1. लोगों के मन से बहुधा निकलती है, जफ़र की यह गज़ल।

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  2. कमाल है जी , कित्ती सुँदर ग़ज़ल . बाटने के लिए शुक्रिया .

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  3. क्या लाजवाब बिम्ब प्रयुक्त किये हैं आपने...

    मनमोहक ,बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...वाह!!!!

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  4. हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।
    *************************
    जय हिंद जय हिंदी राष्ट्र भाषा

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  5. ओह!तुमने पोस्ट भी की है...हमने तो फेसबुक पर ही अपनी बात कह दी...

    BTW तुम्हारी तस्वीर भी बहुत सुन्दर लग रही है...खोई खोई सी

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  6. यह तो मशहूर गजल है -हमें भी पसंद ....वैसे जो आपको पसंद हो वो हमें भी है :)

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  7. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है कृपया पधारें
    चर्चामंच-638, चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  8. बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल है
    शुक्रिया !!!

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  9. आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और
    शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. मैं तो भूल ही गया था इस ब्लॉग को। यहां तो अद्भुत साहित्य का संकलन हैं।

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