(पिछले अंक में-
बड़े दादाजी की शादी का जब ज़िक्र चला तो सुमित्रा जी को तुरन्त कुन्ती की याद आई. कुन्ती, जिसके ब्याह के लिये बाउजी कब से परेशान थे. लेकिन मंगली होने के कारण कोई बढ़िया रिश्ता ही न मिल रहा था. अब आनन-फ़ानन रिश्ता तय हो गया. ब्याह की तैयारियां होने लगीं. अब आगे-)
उधर जब कुन्ती को ये खबर लगी तो जैसे आग लग गयी उसके तन-बदन
में. दुहैजू से ब्याहेंगे हमें? वो भी सुमित्रा के जेठ से!! दो-दो बच्चियों के बाप
से! बचपन से लेकर सुमित्रा के जाने तक यहां दोनों के रूप-रंग की तुलना होती रही और
अब ज़िन्दगी भर के लिये ससुराल में यही यातना भोगें!!! कुन्ती को लगा, हो न हो,
सुमित्रा ने बदला लेने के लिये किया है ये सब. कुन्ती का दिमाग़ वैसे भी बदले जैसी
बात ही सोच पाता था. खूब रोई-धोई मां के आगे. अम्मा ने समझाया, बड़के दादा ने
समझाया, बड़की जिज्जी ने समझाया कि घर परिवार बहुत अच्छा है. और बड़े तिवारी जी तो
एकदम देवता आदमी हैं. रानी बन के रहेगी. सबसे बड़ी बन के जा रही ससुराल में, तो
पूरा परिवार इज़्ज़त देगा. अपनी दाल गलती न देख कुन्ती ने भी ठान लिया कि ठीक है
सुमित्रा बेटा! जैसी आग तुमने लगाई हमारी ज़िन्दगी में, अब तुम लेना मज़ा उस तपन का.
और इस प्रकार कुन्ती, सुमित्रा की जेठानी बन, तिवारी परिवार
में शामिल हो गयी. बस इसीलिये तिवारी जी ने कुन्ती के लिये ’भाभी’ सम्बोधन दिया था
और अज्जू ने बड़ी मम्मी कहा था. और इसीलिये वे कभी भी साधिकार आ धमकती थीं,
सुमित्रा के घर. सुमित्रा, जो बाद में तिवारी जी के साथ उनके नौकरी वाले स्थान पर
चली गयी थी. ऐसे सुमित्रा जी कुन्ती को छोड़ के कभी न जातीं, लेकिन उनके इस जाने
में भी तो पेंच है.
’मम्मी, आप कितनी देर से यहां बाल्कनी में बैठीं हैं! आज
दिया नहीं जलाना क्या आपको?’ तनु, अज्जू की पत्नी और सुमित्रा जी की बहू ने आ के
टोका तो सुमित्रा जी अतीत से बाहर निकलीं. लेकिन कुन्ती की इस तस्वीर ने उन्हें
क्या-क्या तो याद दिला दिया था.....! फिर भी उठीं और पूजाघर की ओर चल दीं. आरती
जलाई, घंटी उठाई बजाने के लिये..... घंटी... यानी गरुड़!! इसी गरुड़ के चलते तो बबाल
हो गया था! ये अज्जू के जन्म के बाद की घटना है.
तब कुन्ती ब्याह के आ गयी थी इस घर में. सुमित्रा की
वाहवाही सुन के कान पके जा रहे थे उसके. जिसे देखो उसे, वही सुमित्रा की माला फेर
रहा!! और तो और, खुद कुन्ती से ही सुमित्रा की तारीफ़ किये जा रहा! कैसे बर्दाश्त
करे कुन्ती!! यहां तक की बड़े दादा ( कुन्ती के पति) भी सुमित्रा की तारीफ़ कर रहे,
कुन्ती से!!!! जली-भुनी कुन्ती अब मौक़े की तलाश में जुट गयी कि कैसे इस सुमित्रा
को सबके सामने नीचा दिखाया जाये. उधर सुमित्रा जी कुन्ती की चिन्ता में अधमरी हुई
जा रही थीं. कुन्ती को तो इतने काम की आदत नहीं...! कुन्ती को दूध रोटी पसन्द
है.... और यहां तो बहुओं को दूध मिलता ही नहीं! कुन्ती को तो सबेरे से भूख लगने
लगती है और यहां तो घर का पुरुष वर्ग जब खा लेता है, तब नाश्ता मिलता है!! अब
चूंकि कुन्ती सबकी बड़ी बन के पहुंची थी सो काम तो उसे नहीं करने पड़ते थे लेकिन
नाश्ते का क्या हो? सुमित्रा ने जुगत भिड़ाई. जब घर के आदमियों के लिये नाश्ते की
पूड़ियां बनाई जायें, तब सुमित्रा जी अपनी देवरानी रमा से दो पूड़ियां मांग लिया करें.
चूंकि सुमित्रा जी की झूठ बोलने की आदत नहीं थी, न ही चोरी की, सो वे किसके लिये
चाहिये, ये बता के ही पूड़ियां निकलवाती थीं, चुपचाप. रमा और सुमित्रा जी के बीच
गहरी छनती थी, और पूड़ियां बनाने का ज़िम्मा, रमा का ही था, बस इसीलिये वे अपनी मांग
उसके सामने रख पाईं. रमा को भला क्या आपत्ति होती, सुमित्रा की मदद करने में? वो
नियम से दो पूड़ियां निकाल के दे देती और सुमित्रा जी चुपके से जा के, कुन्ती के
कमरे में कटोरी रख आतीं. कुन्ती यहां-वहां होती, तो खोज के उसे बता भी आतीं कि
जाओ, खा लो. अब उन्हें क्या पता कि उन पूड़ियों का क्या हो रहा....!
उस दिन कढ़ी बन रही थी. सुमित्रा जी जानती थीं, कुन्ती को
बेसन की पकौड़ियां कितनी पसन्द हैं. तुरन्त रमा से दस-बारह पकौड़ियां, कुन्ती के
लिये अलग रखने को कह दिया. अज्जू छोटा था, तंग कर रहा था सो रमा को ही उन्होनें कह
दिया कि वो जो कुन्ती की अटारी में खूंटे पर बड़ा टोकरा टंगा है न, उसी के अन्दर
कटोरी रख देना, कुन्ती मिलेगी तो हम उसे कह देंगें. सुमित्रा जी अज्जू को बहलाने
ले गयीं, रमा ने बताये हुए स्थान पर पकौड़ियों की कटोरी रख दी. आंगन में कुन्ती मिल
गयी, तो सुमित्रा जी ने उसे धीरे से पकौड़ियां खाने को कह दिया. उधर, बेसन घोला ही
गया था, तो आदमियों के लिये भी नाश्ते में प्याज़ के पकौड़े बना दिये गये. छोटी काकी
ने बड़े दादा और चाचा लोगों को आवाज़ दे के जीमने बुलाया. चौके के बाहर. सब बैठे,
लाइन से, जैसे बैठते थे. सबके सामने नाश्ते की प्लेटें आने वाली थीं, इतने में
कुन्ती ने छोटी काकी को कमरे में बुलाया. कक्को जब लौटीं, तो उनके चेहरे पर
हवाइयां उड़ रहीं थीं. दुख और क्रोध साफ़ देखा जा सकता था उनके मुख-मंडल पर. घर के
सारे आदमियों ने नाश्ता कर लिया तो काकी की आवाज़ गूंजी-
’अबै उठियो नईं लला. बैठे रओ. कछु जरूरी बात करनै है तुम
सें.’
(क्रमश:)
दुहैजू से ब्याहेंगे हमें? yah ek aisa dukh he jo ki us aurat ko jeevan bhar saalta rahta he. kahani charam par pahunchne se pahle kis ghati aur kis mod se jaati he padhna ruchikar hoga.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सत्येंद्र भैया। आप पढ़ते रहिये, हम लिखते रहेंगे।
हटाएंमुझे अब कुंती से सहानुभूति हो रही है।
जवाब देंहटाएंयही तो मज़ा है। पाठक के दिल मे कौन सा पात्र किस तरह उतर जाए।
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