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लीक पर वे चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने,
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं
साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बाँस के झुरमुट
कि उनमें गा रही है जो हवा
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं
शेष जो भी हैं-
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ
गर्व से आकाश थामे खड़े
ताड़ के ये पेड़;
हिलती क्षितिज की झालरें
झूमती हर डाल पर बैठी
फलों से मारती
खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;
गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ,
वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले,
नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल;
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें
बस उसी के ही सहारें हैं ।
लीक पर वें चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं ।
-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने,
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं
साक्षी हों राह रोके खड़े
पीले बाँस के झुरमुट
कि उनमें गा रही है जो हवा
उसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं
शेष जो भी हैं-
वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ
गर्व से आकाश थामे खड़े
ताड़ के ये पेड़;
हिलती क्षितिज की झालरें
झूमती हर डाल पर बैठी
फलों से मारती
खिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;
गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ,
वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले,
नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचे
शुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल;
सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वास
जो संकल्प हममें
बस उसी के ही सहारें हैं ।
लीक पर वें चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं ।
-सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
http://ravikumarswarnkar.files.wordpress.com/2009/04/11.jpg
जवाब देंहटाएंवैसे इन दो कविताओं में प्रत्यक्ष सम्बन्ध नही है .. फिर भी...
यह कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया...
dhanyawad
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर। लगता है रॉबर्ट फ्रॉस्ट को पढ़ रहा हूं।
जवाब देंहटाएंसर्वेश्वर दयाल सक्सेना को पढ़ूंगा गम्भीरता से। देखता हूं नेट पर कितना उपलब्ध है उनका लिखा।
बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंAapko pad kar bahut prabhavit hui...Abhar!
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
लीक छोड़ तीनो चले सागर सिंह सपूत !
जवाब देंहटाएंलीक छोड़ तीनो चले सागर सिंह सपूत !
जवाब देंहटाएंबहुत सही .. बहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता....
जवाब देंहटाएंवंदना जी, आदाब
जवाब देंहटाएंलीक पर वें चलें जिनके
चरण दुर्बल और हारे हैं,
हमें तो जो हमारी यात्रा से बने
ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं..
प्रेरक पंक्तियां...
दिल को छूने वाली हैं..
श्रेष्ठ चयन के लिये आभार
अभी दो-चार दिन पहले मैं इब्नबतूता का जूता देखने के लिए कविताकोश पर सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी को खोजा । खैर इब्नबतूता से पहले ही वहॉ उनकी बहुत सारी कविताऍं मिल गई , जो मिलती गई पढता गया ।
जवाब देंहटाएंइसके पहले पाठ्य पुस्तक में पढा था ।
बिल्कुल सम्मोहित कर लिया कविताओं ने । जैसे "उठ मेरी बिटिया सुबह हो गई" "व्यंग मत " "खूँटियों पर टंगे हुए लोग " गज्जब लिखते हैं कितनी गिनाऊं । कविता कोश में सक्सेना जी की बहुत सारी कविताऍं हैं ।
एक बेहतरीन कविता तो आपने यहॉं दे ही दी ।
itni sundar kavita padhva kar dil aur dimagh trupt kar diye ,dhanyavad
जवाब देंहटाएंaapki pasand hamari bhi pasand hai ,bahut sundar rachna ,padhkar man khush hua .
जवाब देंहटाएं०- धन्यवाद लवली जी.
जवाब देंहटाएं०- धन्यवाद अनिलकन्त जी.
०- धन्यवाद हृदयपुष्प जी.
०- धन्यवाद ज्ञान जी.
०- धन्यवाद मनोज जी
०- धन्यवाद रानी जी.
०- धन्यवाद अरविन्द जी.
०- धन्यवाद संगीता जी.
०- धन्यवाद विनोद जी.
०- धन्यवाद शाहिद जी.
०- धन्यवाद अर्कजेश जी.
०- धन्यवाद इस्मत जी.
०- धन्यवद ज्योति जी.
आप सब की आभारी हूं. सक्सेना जी का लेखन सचमुच इतना प्रभावी है, कि इससे अछूता नहीं रहा जा सकता.
बहुत सही .. बहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंआपकी पसन्द की सराहना करता हूँ!
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
इतनी सुंदर रचना बांटने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंऐसी प्रेरक रचना प्रस्तुत करने पर आपका धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंbahut sunder bhavo ko sanjoye hai ye kavita ........
जवाब देंहटाएंBahut pasand aaee .
Dhanyvad .