सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

संत रविदास

मध्ययुगीन साधकों में संत रैदास का विशिष्ट स्थान है। निम्नवर्ग में समुत्पन्न होकर भी उत्तम जीवन शैली, उत्कृष्ट साधना-पद्धति और उल्लेखनीय आचरण के कारण वे आज भी भारतीय धर्म-साधना के इतिहास में आदर के साथ याद किए जाते हैं।

संत रैदास भी कबीर-परंपरा के संत हैं। संत रैदास या रविदास के जीवनकाल की तिथि के विषय में कुछ निश्चित रूप से जानकारी नहीं है। इसके समकालीन धन्ना और मीरा ने अपनी रचनाओं में बहुत श्रद्धा से इनका उल्लेख किया है। ऐसा माना जाता है कि ये संत कबीरदास के समकालीन थे। ‘रैदास कीपरिचई’ में उनके जन्मकाल का उल्लेख नहीं है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि इनका जन्म पंद्रहवीं शताब्दी में संत कबीर की जन्मभूमि लहरतारा से दक्षिण मडुवाडीह, बनारस में हुआ था। ( संत रविदास का यह परिचय जी की पोस्ट- संत रैदास से साभार.)

प्रभु जी तुम चंदन हम पानी।
जाकी अंग-अंग बास समानी॥

प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा।
जैसे चितवत चंद चकोरा॥

प्रभु जी तुम दीपक हम बाती।
जाकी जोति बरै दिन राती॥

प्रभु जी तुम मोती हम धागा।
जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।

प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा।
ऐसी भक्ति करै 'रैदासा॥

12 टिप्‍पणियां:

  1. sab se pahle to blog ki sakushal wapsi ki badhai :)

    प्रभु जी तुम दीपक हम बाती।
    जाकी जोति बरै दिन राती॥

    bahut sundar panktiyan!!!
    ravidas ji ke bare men saarthak jankari dene ke liye aabhar

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  2. यदि आज भी लोग सन्त 'कबीर दास'और सन्त 'रवि दास'के दिये विचारों को अपना ले तो अनेकों समस्याओं का समाधान सरलता से हो सकता है।

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  3. ब्लॉग वापसी की बधाई...
    सहज सरल शब्दों में गंभीर संदेश..

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  4. संत रविदास को नमन , सुंदर सार्थक पोस्ट

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  5. मन चंगा तो कठौती में गंगा के रचना कार को सलाम .उनके आदर्शों को प्रणाम उनके मूल्य बोध का अर्चन वंदन .

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  6. क्या खूब कहा आपने वहा वहा क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
    मेरी नई रचना
    प्रेमविरह
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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  7. छोटे कुल में उत्तम भक्ति , सो भक्त रविदास हुआ ।
    कहां तक महिमा करूं में उनकी, बैकुन्ट में सम्मान हुआ ।।
    छुआछूत की तोड़ी भ्रमना , विप्रों को कराया ज्ञान ।
    चार युगों की चार जनेंऊँ , चीर दिखाई अंग दरमियान ।।

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