मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

श्रद्धान्जलि......


सुप्रसिद्ध शायर/शिक्षाविद शहरयार साहब अब हमारे बीच नहीं हैं. लम्बी बीमारी के बाद कल रात उनका निधन हो गया. वे ७६ वर्ष के थे. यह रचना श्रद्धान्जलि-स्वरूप.

शहरयार : एक परिचय

16 जून 1936-13 फरवरी, 2012

वास्तविक नाम : डॉ. अखलाक मोहम्मद खान

उपनाम : शहरयार

जन्म स्थान : आंवला, बरेली, उत्तरप्रदेश।

प्रमुख कृतियां : इस्म-ए-आज़म (1965), ख़्वाब का दर बंद है (1987), मिलता रहूंगा ख़्वाब में।

अख़लाक़ मोहम्मद ख़ानविविध : 'उमराव जान', 'गमन' और 'अंजुमन' जैसी फिल्मों के गीतकार । साहित्य अकादमी पुरस्कार (1987), ज्ञानपीठ पुरस्कार (20
08)। अलीगढ़ विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफे
सर और उर्दू विभाग के अध्यक्ष रहे।
ज़िंदगी जैसी तवक़्क़ो थी नहीं, कुछ कम है
हर घड़ी होता है अहसास, कहीं कुछ कम है

घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ यह ज़मीं कुछ कम है

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है, यकीं कुछ कम है

अब जिधर देखिये लगता है कि इस दुनिया में
कहीं कुछ चीज़ ज़ियादा है कहीं कुछ कम है

आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
यह अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है



14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खलेगी इस शायर की कमी.विनर्म श्रद्धांजलि.

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    1. "वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे
      सुना है आज कोई शख़्स मर गया यारो"
      जब से सहरयार साहब के जाने की खबर सुनी है, यही पंक्तियां दिमाग़ में शोर मचा रही हैं शिखा. सचमुच बहुत खलेगी उनकी कमी.

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  2. जब से गीतों में रूचि जागी...पसंदीदा गीत रहे.."सीने में जलन ..आँखों ने तूफ़ान सा क्यूँ है'....."कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता.." ये क्या जगह है दोस्तों.. ये कौन सी दयार है'..जिंदगी जब भी तेरी बज़्म में लाती है हमें...' जुस्तजू जिसकी थी.. उसको तो ना पाया हमने.."..और विभिन्न फनकारों द्वारा गाईं गयीं 'शहरयार ' की तमाम गज़लें..... इन्हें लिखने वाले अज़ीम शायर "शहरयार ' की कमी सदा खलेगी

    विनम्र श्रद्धांजलि

    ज़ज्ब करे क्यूँ रेत हमारे अश्कों को
    तेरा दामन तर करने अब आते हैं.

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    1. रश्मि, अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो.. क्यों भूल रही हो?

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  3. घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
    अपने नक्शे के मुताबिक़ यह ज़मीन कुछ कम है
    bahut hi achchhi rschna hai .
    vinamra shraddhajali

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    1. ज्योति शहरयार साहब मेरे चंद पसंदीदा शायरों में से एक हैं.

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  4. आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
    यह अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है
    यह शहरयार ही लिख सकते थे ....श्रद्धांजलि!

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  5. शहरयार का जाना साहित्यजगत की एक ऐसी क्षति है जिसे पूरा नहीं किया जा सकता
    बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
    दिल में उम्मीद तो काफ़ी है, यकीं कुछ कम है

    आज भी है तेरी दूरी ही उदासी का सबब
    यह अलग बात कि पहली सी नहीं कुछ कम है

    क्या बात है !!

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  6. शहरयार जी से तो सभी वाकिफ हैं
    श्रद्धांजलि

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  7. क्या खूब कहा आपने वहा वहा क्या शब्द दिए है आपकी उम्दा प्रस्तुती
    मेरी नई रचना
    प्रेमविरह
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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