शनिवार, 22 दिसंबर 2018

भदूकड़ा (भाग-तीन)


सुमित्रा जी के बड़े भाई, यानी बड़के दादा कुंती की हरक़तों को समझते थे, लेकिन स्वभाव से ये भी सुमित्रा जैसे ही थे, सो भरसक वे कुंती को समझाने की कोशिश ही करते, ये ज़ाहिर किये बिना कि वे उसकी हरक़त ताड़ गये हैं. बड़ी जिज्जी अम्मा के साथ रसोई में लगी रहती थीं, सो उन्हें फुरसत ही नहीं थी इस पूरे झमेले को समझने या सुलझाने की. रह गये दो छोटे भाई-बहन, उन्हें उतना समझ में आता था, समझने की कोशिश ही करते थे. आज का समय होता, तो बच्चे ही सबसे पहले समझते बात को. सुमित्रा जी की अम्मा थीं तो तेज़ तर्राट लेकिन बच्चों के ऐसे मामलों में उलझने का उनके पास टाइम न था, जिन्हें शैतानियां कहते हैं. जब शिक़ायतें हद से ज़्यादा बढ़ जातीं, तो छहों बच्चों को लाइन से खड़ा करके दो-दो चमाट लगातीं, और सबके कान पकड़, पढ़ने बिठा देतीं. बस हो गयी उनकी ज़िम्मेदारी पूरी. खूबसूरत तो अम्मा भी बहुत थीं. खूब गोरी, दुबली-पतली अम्मा, लम्बी भी खूब थीं. सुमित्रा उन्हीं को तो पड़ी थी. पांच बच्चे ग़ज़ब के सुन्दर और अकेली कुंती.............. बोलने वाले भी ऐसे कि कुंती के मुंह पे ही कह जाते- ’मां-बाप इतने सुन्दर हैं, फिर जे कुंती किस पे पड़ गयी ?’ उनके बोलने में इतनी चिन्ता होती, जैसे कुंती को ब्याहने की ज़िम्मेदारी तो उन्हीं के सिर पर है. अब आप ये न कहने लगना कि लड़कियां केवल ब्याहने के लिये होती हैं क्या? अरे भाई ब्याहने का उदाहरण इसलिये दिया, कि वो समय लड़कियों को बहुत जल्दी ब्याह देने का था. ग्यारह-बारह की हुई नहीं कि शादी की चिन्ता शुरु. बाऊजी का गुस्सा सब जानते थे सो उन तक कोई शिक़ायत पहुंचती ही नहीं थी. फिर भी कुंती की चंचलता से वे वाकिफ़ तो थे ही.
मोबाइल अब तक हाथ में ही ले के बैठी सुमित्रा जी की तंद्रा, सब्ज़ी वाले की आवाज़ से भंग हुई. तिवारी जी भी हाथ में अखबार लिये अन्दर तक आ गये थे. 
“क्या बात है सुमित्रा जी? सब्ज़ी वाला कितनी देर से आवाज़ लगा रहा और आप हैं कि यहां होते हुए भी सुन नहीं पा रहीं.”  तिवारी जी ने अपनी बात कुछ इस भाव से पूरी की जैसे उन्हें ड्राइंग रूम से उठ के अन्दर तक आने में मीलों का सफ़र तय करना पड़ा हो. हां एक बात ज़रूर है, तिवारी जी ने सुमित्रा जी को हमेशा सुमित्रा ’जी’ और आप कह के ही सम्बोधित किया है. दोनों के बीच मामूली बहसें होती रही हैं, लेकिन इन बहसों ने लड़ाई का रूप कभी नहीं लिया. तिवारी जी भी जानते हैं, सुमित्रा जी ने क्या-क्या भोगा है. कितनी मुश्क़िलों से बाहर निकली हैं और कितने दिनों बाद सुकून की ज़िन्दगी पाई है.
  “किसका फोन था मम्मी?’ अज्जू, सुमित्रा जी का छोटा बेटा भी आ गया था कमीज़ की बांहें फ़ोल्ड करते हुए.उसका भी ऑफ़िस जाने का टाइम हो गया था.


“अरे किसी का नहीं भाई.”
’किसी का नहीं? तुम बात तो कर रही थीं फोन पर. चलो कोई न.’ मुस्कुराते हुए अज्जू नाश्ते के लिये डायनिंग टेबल की कुर्सी खींच बैठ गया था.
’कमला..... नाश्ता दे दो अज्जू को.’ ये जानते हुए कि कमला ने अज्जू को बैठते देख लिया है, तब भी सुमित्रा जी ने आदेश दिया.
’वो कुंती मौसी का फोन था बेटा.’
’हूं........’ मन ही मन मुस्कुराया अज्जू. जानता था मम्मी बतायेंगी ही. वैसे वो भी जान गया था कि फोन किसका रहा होगा.
’क्या कह रही थीं? आना चाहती होंगीं, या बीमार होंगीं, या बहुत परेशान....’ सुमित्रा जी के बताने के पहले ही अज्जू ने फोन की रटी रटाई वजहें गिनानी शुरु कर दीं.
 ’कुंती मौसी और परेशान!! हम लोग जानते तो हैं मम्मी उनकी आदत. उनकी वजह से दूसरे ही परेशानी उठाते हैं. वे ही सबको परेशान करती हैं, वो खुद कब से परेशान होने लगीं? और हां, अब तुम उन्हें बुला न लेना, वरना हम सब भी परेशान हो जायेंगे.’ अज्जू की आवाज़ में विनय की जगह विवशता ही ज़्यादा थी. जानता था, मम्मी करेंगीं वही, जो चाह लेंगीं. न पापा की चली है कभी, न बच्चों की. रूपा दीदी मम्मी को समझा-समझा के हार गयीं. शादी हो गयी और अपनी ससुराल चली गयीं, लेकिन मम्मी को कुंती मौसी के मामले में न समझा सकीं. दीपा तो अज्जू से भी छोटी है, सो उसकी सुनता कौन है? कोशिशें तो दीपा ने भी कीं, लेकिन उसे मम्मी ने हमेशा ये कहते हुए कि- ’ तुम छोटी हो, छोटों की तरह बात करो. हमसे बड़ी न हो जाओ’ उसकी बोलती बंद रखी. कुंती मौसी के लिये चार बातें वो केवल अज्जू या रूपा के कान में ही कह पाती है. 
परिस्थितियां समझ रहे हैं न आप? सुमित्रा जी का कुंती के प्रति प्रेम भी समझ में आ गया होगा. लेकिन ऐसा क्यों है? कुंती की इतनी नफ़रत का जवाब सुमित्रा जी हमेशा प्रेम से देती हैं!! कहीं उन्होंने “घृणा पाप से करो, पापी से नहीं” वाला आदर्श वाक्य अपने जीवन में तो नहीं उतार लिया? या कोई और कारण? कहीं सुमित्रा जी की कोई कमज़ोरी....... अरे न न.... आप लोग भी न. दिमाग़ बहुत दौड़ाते हैं. सही दिशा में दिमाग़ दौड़े, तो फिर भी ठीक, आप लोग तो हर बात में ग़लत पहले खोज लेते हैं. सुमित्रा जी की कोई कमज़ोरी..... तौबा तौबा!! असल में सुमित्रा जी जैसा इंसान तो खोजे खोजे न मिलेगा आपको. फिर? अरे यार..... क्या फिर-फिर लगा रखी है? जो होगा सो पता चलेगा न? बहुत हड़बड़िया हैं आप. हुंह!
(क्रमश:)
सभी तस्वीरें- गूगल सर्च से साभार


14 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया जैसे परिवेश साकार हो गया

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  2. तस्वीर साफ हो रही है, घटनाक्रम कुछ प्रकट या कुछ कुछ दबा छिपा...।बहुत अच्छे अच्छे लूँ से मिलना और घर का सा माहौल दिख रहा है! आनन्द आ रहा है जिज्जी!

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    1. कल वाला भाग पढा कि नहीं? तुम लोग पढ़ते रहो तभी तो हम लिख पाएंगे 😊

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    2. ये तो इल्ज़ाम है सरासर! अब सज़ा के तौर पर भाग चार पेश किया जाए! ऐं... ये का बक गए हम! पलटकर देखिए,पहले दो फिर तीन!

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    3. हाहाहा...अब बक गए तो बक गए 😂😂😂😂

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  3. अब कहानी की गिरहें खुल रहीं हैं...उत्सुकता बनी हुई है । कहने का अलहदा अंदाज़ बहुत पसंद आ रहा ।

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  4. अरे समझ गए हम। सुमित्रा जी अपने स्वभाव और बहन प्रेम के आगे मजबूर हैं बस!!! मुझे लगता है बच्चे संभाल लेंगे 🤔 खैर देखते हैं आगे।

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