रविवार, 4 अप्रैल 2010

मेरी पसंद....







हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।



मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं
उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।



जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।



जिंदगी चाहिए मुझको मानी भरी,
चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।



लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,
शानोशौकत का सामाँ मगर चाहिए।



जब मुसीबत पड़े, और भारी पड़े,
तो कहीं एक तो चश्मेतर चाहिए।



० कन्हैयालाल नंदन

31 टिप्‍पणियां:

  1. हर सुबह को दोपहर चाहिए...
    ...लेकिन यहाँ तो लोग लकीर को पकड़कर बैठे रहते हैं....अच्छी कविता....
    http://laddoospeaks.blogspot.com/

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  2. अच्छी कविता पढ़वाने के लिये धन्यवाद ।

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  3. बहुत सुन्दर पसंद है आपकी ,लाजवाब रचना.

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  4. बहुत सुन्दर पसंद है आपकी! शुक्रिया इसे फ़िर से पढ़वाने के लिये। यह कविता नन्दनजी ने लिखी जब वे आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ़ मेडिकल साइंस में 03/10/05 को डायलिसिस करा रहे थे। बाद में इसकी अपनी हस्तलिखित प्रतिलिपि भी दी थी उन्होंने मुझे। एक कवि मन की सच्ची भाववायें हैं इसमें।

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  5. सुंदर कविता पढवाने के लिए आभार

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  6. नंदन जी की कविता पढवाने के लिए आभार। बचपन में पढी पत्रिका "पराग" की याद आ गई।

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  7. वन्दना ,कन्हैया लाल नन्दन जी मेरे पसन्दीदा कवियों में से एक हैं ,
    धन्यवाद कि इतनी अच्छी ग़ज़ल पढ़्वाई तुम ने ख़ास तौर पर ये शेर ,,,,,,,,,

    मैं ने मांगी.........
    और
    जब मुसीबत...........

    बहुत ख़ूबसूरत

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  8. टिप्पणी के इन स्वरों में स्वर हमारा बज रहा है!
    आपके इस ब्लॉग पर यह गीत सुन्दर सज रहा है!

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  9. वंदना जी बहुत सुंदर ग़ज़ल..कन्हैयालाल नंदन जी को बधाई देना चाहता हूँ साथ ही साथ आपको भी जो भावनाओं से सजी एक बेहतरीन ग़ज़ल प्रस्तुति किया..

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  10. ab to ham rab se karte he duwa ki
    aap ki umer so sal honi chahiye

    bahut sundar rachna badhai aap ko

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  11. बड़ी अच्छी कविता पढवाई कन्हैया अंकल की...पराग के संपादक थे,तब से उनके लिए अंकल शब्द ही ज़ेहन में आता है...और बहुत अपने से लगते थे ये अंकल..ज़ाहिर है उनका लिखा भी कुछ ख़ास ही लगेगा...वैसे भी बहुत सुन्दर रचना है...


    ज़िन्दगी चाहिए मुझको मानी भरी,
    चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।

    बहुत खूब..इतनी सुन्दर ग़ज़ल पढवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया

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  12. नन्दन जी सरीखे व्यक्तित्व की गज़ल पढवाने के लिये आभार
    बहुत सुन्दर गज़ल

    जवाब देंहटाएं
  13. हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
    मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।

    मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं
    उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।

    जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
    मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।

    जिंदगी चाहिए मुझको मानी भरी,
    चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।

    लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,
    शानोशौकत का सामाँ मगर चाहिए।

    जब मुसीबत पड़े, और भारी पड़े,
    तो कहीं एक तो चश्मेतर चाहिए।
    =======================
    बहुत अच्छे भावों की प्रस्तुति की गई है
    मुझे जो शेर सबसे ज्यादा पसंद आया वो है --
    जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
    मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।
    - विजय तिवारी 'किसलय '

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  14. हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
    मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।

    मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं
    उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।

    जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
    मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।

    जिंदगी चाहिए मुझको मानी भरी,
    चाहे कितनी भी हो मुख्तसर, चाहिए।

    लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी,
    शानोशौकत का सामाँ मगर चाहिए।

    जब मुसीबत पड़े, और भारी पड़े,
    तो कहीं एक तो चश्मेतर चाहिए।
    bahut bahut sundar mujhe har baat laazwaab lagi .

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  15. लाजवाब रचना ....पढवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .

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  16. बहुत लाजवाब,हर इक बात बहुत गहरी.इतनी बेहतरीन प्रस्तुती के लिए आभार

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  17. बहुत सुंदर कविता
    आप का धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  18. हर सुबह को कोई दोपहर चाहिए,
    मैं परिंदा हूं उड़ने को पर चाहिए।

    मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं
    उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।

    जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
    मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।

    bahut khoob .....!!

    जवाब देंहटाएं
  19. कितने लोग हैं जो दूसरों को सम्मान देते हैं? कितने हैं जो अपने लेखन के आगे किसी अन्य के लेखन को महत्व देते हैं? कितने रचनाकार स्वयं के अलावा दूसरों का लिखा-पढ़ा भी याद रखते हैं? निस्संदेह आटे में नमक बराबर.
    आपको सलाम कि आप दूसरों को न सिर्फ महत्व देती हैं बल्कि उसे अपनी पसंद बताकर हम जैसों के समक्ष रखती भी हैं.
    ज्यादा दिनों के बाद आया हूँ, क्षमा ही चाहूँगा. रोज़गार चैन से बैठने नहीं देता. लेकिन आप और आपका ब्लॉग, बल्कि आप जैसे बहुत सारे मित्र याद रहते हैं.
    ब्लॉग पर न आ सकूं फिर भी जहन में सारी स्मृतियाँ ऊर्जा देती रहती हैं.

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  20. जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
    मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।
    लाजवाब पंक्तियाँ! बहुत बढ़िया लगा! सुन्दर कविता!

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  21. मैंने मांगी दुआएँ, दुआएँ मिलीं
    उन दुआओं का मुझपे असर चाहिए।

    जिसमें रहकर सुकूं से गुजारा करूँ
    मुझको अहसास का ऐसा घर चाहिए।

    वंदना जी.....लाजवाब और बेशक़ीमती है आपकी पसंद

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  22. Maine maangee duayen,duaayen milee
    un duaon kaa mujhpe asar chaahiye
    --------------
    jismein rahkar sukunse guzara karun
    mujhko ahsaas kaa aesa ghar chahiye
    Wah,kyaa baat hai in
    ashaar mein.Dil mein utar gye hain.
    Nandan aur aapko badhaaee aur
    shubh kamna.

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  23. ये रचना पहले भी पढ़ी है..बहुत अच्छी है.
    आप की पसंद लाजवाब है.

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  24. एक बेहद ही उम्‍दा गजल पढवाने के लिये शुक्रिया वन्‍दना जी और शुक्रिया जनाब कन्‍हैयालाल जी का जिन्‍होंने एक खूबसूरत सी रचना से रूबरू करवाया | आभार ।।

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  25. बहुत हार्दिक कविता लेखन किया है. जारी रखें.
    सादर,

    माणिक
    आकाशवाणी ,स्पिक मैके और अध्यापन से जुड़ाव
    APNI MAATI
    MANIKNAAMAA

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  26. मेरा प्रणाम ! पहुँच नहीं अभी तक ...........शायद अटक गया हो कही ..............

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  27. नंदन जी की मधुर कविता पढवाने के लिए आपका आभार वंदना जी !

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  28. नन्दन जी की यह रचना पढ़वाने के लिये बहुत आभारी हूँ आपका । बरसों पहले नंदन जी से हुई मुलाकात याद आ गई ।

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