शनिवार, 2 मार्च 2013

मेरी पसन्द........


इक बार कहो तुम मेरी हो........
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हम घूम चुके बस्ती-वन में
इक आस का फाँस लिए मन में

कोई साजन हो, कोई प्यारा हो
कोई दीपक हो, कोई तारा हो

जब जीवन-रात अंधेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

जब सावन-बादल छाए हों
जब फागुन फूल खिलाए हों

जब चंदा रूप लुटाता हो
जब सूरज धूप नहाता हो

या शाम ने बस्ती घेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

हाँ दिल का दामन फैला है
क्यों गोरी का दिल मैला है

हम कब तक पीत के धोखे में
तुम कब तक दूर झरोखे में

कब दीद से दिल की सेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
ये काज नहीं बंजारे का

सब सोना रूपा ले जाए
सब दुनिया, दुनिया ले जाए

तुम एक मुझे बहुतेरी हो
इक बार कहो तुम मेरी हो

0- इब्ने इंशा

19 टिप्‍पणियां:

  1. वाह! बड़ी ही सरस कविता है..आनंद आ गया.

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  2. हृदयस्पर्शी ....अत्यंत मनोहारी ...सुंदर रचना ,

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  3. सब समझ में आया बस अंतिम इब्ने इंशा का अर्थ बता दीजियेगा

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    1. मनु जी, इब्ने इन्शा उर्दू के प्रख्यात कवि और व्यंग्यकार थे. ये गीत उन्हीं का है. मैने तो बस यहां साझा किया है.

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  4. सब सोना रूपा ले जाए
    सब दुनिया, दुनिया ले जाए

    तुम एक मुझे बहुतेरी हो
    इक बार कहो तुम मेरी हो

    ...वाह! बहुत मनभावन रचना..

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  5. अत्युत्तम भावाभिव्यक्ति ! प्रणय निवेदन के लिए इनसे उपयुक्त शब्द और क्या हो सकते हैं ।

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  6. गहरी अभिव्यक्ति ....पढवाने का आभार

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  7. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  8. बहुत खूब सार्धक लाजबाब अभिव्यक्ति।
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये
    कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे

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  9. तुम एक मुझे बहुतेरी हो
    इक बार कहो तुम मेरी हो.

    मनमोहक...
    शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  10. क्या झगड़ा सूद-ख़सारे का
    ये काज नहीं बंजारे का

    सब सोना रूपा ले जाए
    सब दुनिया, दुनिया ले जाए

    तुम एक मुझे बहुतेरी हो
    इक बार कहो तुम मेरी हो

    बहुत बहुत सुंदर !
    शेयर करने के लिये धन्यवाद वन्दना

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  11. बहुत सुंदर-- ----
    बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में सम्मलित हों,प्रतिक्रिया दें
    jyoti-khare.blogspot.in

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  12. बहुत खूब!.............ले बद्द्ता ऐसी की मन बस बह गया............बहुत सुब्दर.........

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