रविवार, 17 अक्तूबर 2010

सब जानती है शैव्या....

" माननीय मुख्य अतिथि महोदय, गुणीजन, सुधिजन, राज्य शासन द्वारा दिया गया यह सर्वोच्च सम्मान , केवल शैव्या जी का सम्मान नहीं, वरन मेरा, आपका, हम सबका सम्मान है, पूरे क्षेत्र का सम्मान है. पूरी नारी जाति का
सम्मान है. उनके सम्मानित होने से हमारे अखबार में चार चांद लग गये हैं. हमारा सर गर्व से ऊंचा उठ गया
है......."
मंच पर अन्य अतिथियों के साथ बैठी शैव्या के चेहरे पर एक कड़वी मुस्कान उभरी थी, माथुर के इस स्तुति गान के साथ . हर शब्द के साथ पीछे लौटती जा रही थी शैव्या .
पन्द्रह साल पहले जब इस अखबार के दफ़्तर में कदम रखा था उसने, तब माथुर ने ही फ़िकरा कसा था-
" अच्छा... तो अब लड़कियां भी पत्रकारिता करेंगीं?"

कुल अट्ठाइस लोगों को बुलाया गया था इन्टरव्यू के लिये, जिनमें सत्ताइस लड़के थे. धड़कन तो सुबह से ही बढ गई थी शैव्या की, यहां आकर निराशा बढी थी. २७ लड़के और वो अकेली लड़की!! पता नहीं क्या होगा?
साक्षात्कार के दौरान भी सम्पादक ने कुछ खास पूछा ही नहीं. यहां-वहां की बातें कीं, लेखन से जुड़ी,
माज से जुड़ी, बस. तीन दिन बाद नियुक्ति-पत्र मिला तो खुशी से उछल पड़ी थी शैव्या. वैसे पता नहीं क्यों, उसे उम्मीद थी, खुद के चुने जाने की.
पहला दिन कैसे भूल सकती है शैव्या?
अखबार के कामकाज से अनभिज्ञ शैव्या ने ऑफ़िस में कदम रखा तो आठ जोड़ी आंखें उसका मुआयना करने लगीं, राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय पृष्ठ के सम्पादक थे माथुर, उन्ही के अन्डर में काम करना था शैव्या को. व्यंग्य भरी मुस्कान के साथ माथुर ने कुर्सी की तरफ़ इशारा किया था. बिल्कुल अच्छी नहीं लगी थी उसे ये मुस्कान.
शैव्या ने नोटिस किया, कि बाकी लोगों के होठों पर भी कुछ इसी तरह की मुस्कान चस्पां थी. शैव्या के बैठते ही माथुर ने टेलीप्रिंटर के पांच-सात न्यूज़-रोल उसकी टेबल पर पटक दिये ." सारे समाचार काट-काट के रखिये, और पेज़ पर जाने लायक इम्पोर्टेंट न्यूज़ की कटिंग अलग करती जाइए. मैं आता हूँ अभी."
कह के माथुर बाहर निकल गए. उलझन में पड़ गई शैव्या . उसे तो रोल की हर न्यूज़ ख़ास लग रही थी! किसे रख ले किसे फेंक दे?
चार बड़े-बड़े बंच बन गए थे खबरों के...
उधर माथुर ने आते ही उसे डांटना शुरू कर दिया.
"ये क्या? अभी तक एक भी समाचार नहीं बना पाईं आप? तीन बजे तक पूरे पेज का मैटर दे देना होता है और आप गड्डियाँ लगा रही हैं...? "
माथुर की बुदबुदाहट में " पता नहीं कहाँ से चले आते हैं..." साफ़ सुनाई दिया था उसे.
इतना अपमान तो कभी किसी ने किया ही नहीं था शैव्या का! स्कूल-कॉलेज में हमेशा रैंक-होल्डर रही... अभी तक तो केवल तारीफ़ ही सुनी थी उसने अपनी. आंसू आ गए उसके.
" यार तुम भी न. आज पहले दिन आई है लड़की, और तुमने पूरा काम सौंप दिया. थोडा थोडा करके सिखाओ भाई."
पांडे जी को बुरा लग था शायद. उम्रदराज़ भी थे, इसीलिये माथुर को डपट दिया उन्होंने. पांडे जी की समझाइश पर बुरा सा मुंह बना लिया था माथुर ने.
" लीजिये, हैडिंग बनाइये . एस सी , इनकी डीसी, और इन दोनों की टीसी हैडिंग बनाइये."
अब ये क्या नई मुसीबत है? हैडिंग तो ठीक है, लेकिन ये एससी, डीसी और टीसी ....? शैव्या
को लगा, नहीं कर पाएगी यहाँ काम. पत्रकार बनने का सपना टूटता नज़र आया उसे. कैसे कर पाएगी? जब कोई सिखाने वाला ही नहीं?
" Hello young lady, What's going on? How is day going? Got some work?"
ओह... ... आय’म महेन्द्र, महेन्द्र काले. "
लगभग बुज़ुर्ग से महेन्द्र काले बहुत अपने से लगे उसे.
" अभी तक तो कुछ भी समझ में नहीं आया सर . माथुर सर ने कुछ समझाया ही नहीं. ये हैडिंग्स
दीं हैं बनाने के लिए, लेकिन मुझे नहीं
मालूम , इन्हें बनाने का तरीका क्या है."
एक बार में ही पूरी भड़ास निकाल दी शैव्या ने. गाय बन के रहना तो उसे वैसे भी नहीं पसंद.
तमक के देखा था माथुर ने शैव्या को. ऐसी उम्मीद नहीं थी शायद उसे.

" क्या माथुर,..... अपनी सीनियोरिटी झाड़ने के लिए ये बच्ची ही मिली तुम्हें? कुछ सिखाओगे
नहीं, तो उसे समझ में कैसे आएगा? सिखा नहीं पा रहे हो, तो अलग बात है."
महेंद्र काले कार्यकारी सम्पादक थे. वरिष्ठ थे, और प्रथम पृष्ठ देखते थे.
काले सर ने सिखाया और ख़ास-ख़ास बातें शैव्या केवल तीन दिन में सीख गई.
तीसरे
महीने
तो उसे इसी पृष्ठ का स्वतन्त्र प्रभार भी दे दिया गया.
मुख्य सम्पादक उसकी कार्य-शैली से इतने प्रसन्न की तमाम ख़ास रिपोर्टिंग उसके जिम्मे
करते चले गए.
" आदिवासी जनजाति बहुल इस क्षेत्र की समस्याओं पर इस रिपोर्ट के पहले कभी इतनी
गहराई से प्रकाश नहीं डाला गया . सच्चा पत्रकार वही है, जो अपनी कलम की सार्थकता सिद्ध
कर सके. शैव्या जी की कलम ने आज उस क्षेत्र की ओर ध्यान आकर्षित करवाया है, जिसका
सामाजिक नक़्शे में से लोप ही हो चुका था. शासन की ओर से बहुत जल्द इस इलाके को
मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जायेंगीं. और प्रशासन से आग्रह है कि वह इसे सुचारू रूप से
क्रियान्वित करवाए. "

मंत्री जी के मुंह से अपना नाम सुन के शैव्या की तन्द्रा भंग हुई .
शैव्या की सफलता से प्रसन्न हो, प्रबंध सम्पादक ने उसका नाम कार्यकारी सम्पादक के लिए
प्रस्तावित किया, जिसे काले सर ने, जो अब मुख्य सम्पादक थे, सहर्ष स्वीकार कर लिया.
उपसंपादक के रिक्त पड़े पद पर कल ही नई नियुक्ति हुई थी. आज एक नई
लड़की उसी जगह आने वाली थी, जहाँ पंद्रह साल पहले शैव्या आई थी.
घर में मन ही नहीं लग रहा था उसका. ड्यूटी तो तीन बजे से शुरू होती थी, लेकिन शैव्या
को लग रहा था कि वो अभी ही प्रैस चली जाए. वही माथुर........वही नई भरती.......
यंत्रवत शैव्या तैयार हुई, और ऑफिस पहुँच गई. माथुर की टेबल के सामने भी बेखयाली में ही
पहुँच गई.

" माथुर जी, नई भरती है, पहले उसे एससी , डीसी, टीसी के मायने बता दें, हैडिंग बनाने का
तरीका भी....."

अवाक हो कर माथुर शैव्या को और मुस्कुराती हुई आठ जोड़ी आखें माथुर

को देख रहीं हैं, शैव्या जानती है.

( सभी चित्र गूगल सर्च से साभार)