गुरुवार, 29 अगस्त 2019

भदूकड़ा (भाग-आठ)


(अब तक: 

सच्चाई जानने के बाद बड़के दादा ने तिवारी को बुला भेजा. इस अचानक बुलावे ने तिवारी जी को संशय में डाल दिया. घर आ के भी तिवारी जी को कुछ खबर न लगी कि हुआ क्या? बस सुमित्रा जी को आनन-फ़ानन साथ ले जाने का आदेश हो गया. अब आगे-)



’दादी...... कब से ढूंढ रहां हूं आपको. आज लूडो नहीं खेलेंगीं क्या?’
चन्ना की आवाज़ पर चौंक सी गयीं सुमित्रा जी. देखा हाथ में अब तक वही गरुड़, यानी पूजा की घंटी लिये बैठी हैं, धीरे-धीरे बजाती हुईं.
’येल्लो दादी! अब तक आप भजन ही कर रहीं? अरे उठिये न प्लीज़..... मैने पूरा गेम सजा लिया है, बस आपको वहां तक चलना है. सुमित्रा जी के हाथ से घंटी छुड़ा के भगवान के पास रखते हुए चन्ना ने उनका हाथ पकड़ के उठाने की कोशिश की. भारी शरीर की सुमित्रा जी काहे को उठ पातीं छह साल के चन्ना से? चन्ना के साथ बैठीं सुमित्रा जी, चन्ना में अज्जू को देख रही थीं..... अज्जू, जब एक साल का रहा होगा, तब गरुड़ में दूध भर के पीने की ज़िद पकड़ बैठा. उधर चक्की पर अनाज पीसने की बारी अब सुमित्रा जी की ही थी, तो वे भी हड़बड़ी में थीं, कि अज्जू जल्दी से दूध पी ले, तो वे काम पर लगें. लेकिन इधर उन्होनें कटोरी से दूध गरुड़ में डाला, उधर कुन्ती प्रकट हो गयी! फिर तो जो बवाल हुआ उसका क्या कहें! उस घंटी को लिये-लिये कुन्ती पूरे घर में घूमी.... और अन्त में पीछे वाले आंगन के कुंएं में फ़ेंक के आ गयी. घर के बड़े बूढ़े सुमित्रा को जाने कितने दिनों तक धर्म-कर्म की बातें सिखाते रहे थे.....! और सुमित्रा बस घूंघट के अन्दर आंसू बहाती रहती.
अचानक ही पहुंचे तिवारी जी को देख छोटी कक्को अचरज में पड़ गयीं.
’अरे छोटे? तुम कैसें आ गये? तबियत तौ साजी है न? उखार-बुखार तौ नइयां? बड़े, देखियो तनक. कौनऊ दिक्कत तौ नइयां छोटे खों.’
’आंहां छोटी कक्को. छोटे हां हमने बुलाओ तो. कक्को, घर में जौन कछु हो रओ, बा तौ तुम देखई रईं. छोटी बहू के लाने तौ मुसीबत ठांड़ी हर कदम पे. बा कछु करे तौ औ न करे तौ, दोष तौ लगनेई लगने है. सो हमने सोची कि इत्ती पढ़ी-लिखी मौड़ी, इतै काय हां गोबर लीपै, उतै छोटे के पास जा के पढ़ाई कर ले. फिर छोटे खों दिक्कत तो होत है, बौ कहत नइयां.’ बड़े दादा ने अपनी मंशा ज़ाहिर की. लेकिन छोटी कक्को भड़क गयीं. बोलीं-
’ऐसो छोटो-मोटो झगड़ा झंझट तौ चलत रात. हम तौ जानत हैं न छोटी दुल्हिन हां? सो तुम चिन्ता जिन करौ. ऊए नईं भेजने कऊं.’
लेकिन बड़े दादा कुन्ती को बहुत अच्छी तरह पहचान गये थे. वे अपनी ज़िद पर अड़े रहे, कि सुमित्रा तो जायेगी ही जायेगी.
 अगले दो दिन में सुमित्रा की तैयारी कर दी गयी. सुमित्रा के जाने की बात से सब दुखी थे. सबसे ज़्यादा दुख तो कुन्ती को ही था, क्योंकि अब तो सुमित्रा इस भरे-पूरे परिवार से आज़ाद हो, अकेली रहने जा रही थी! कुन्ती सोचती, दांव उल्टा पड़ गया क्या? छोटी कक्को तो बाक़ायदा आंसुओं सहित रो रही थीं. सुमित्रा ही कहां खुश थी? उसे भी सबका साथ ही प्यारा था. उस ज़माने में वैसे भी बहुंएं अकेलेपन से घबराती थीं. लेकिन क्या किया जाये? जाना तो था ही. बड़े दादा ठान चुके थे. सुबह सुमित्रा को जाना था और दिन भर छोटी कक्को परेशान रहीं, कि क्या-क्या न बांध दें उसके साथ. मीठे पुए, नमकीन पूरियां, मठरी, शकरपारे, बेसन के लड्डू, शुद्ध घी, भरवां करेले इतने कि दो-चार दिन तक चलते रहें. सत्तू, गेंहू का आटा, दलिया, दालें....... तब भी उनका मन न भरता, थोड़ी देर में एक पोटली और बढ़ जाती सामान में. तिवारी जी झुंझला रहे थे कि इतना सामान ले कैसे जायेंगे? लेकिन बड़के दादा ने उसका भी इंतज़ाम कर दिया. गांव से घर के ट्रैक्टर में जायेगा सारा सामान, जीप में बच्चे-बहू आदि. झांसी पहुंच के फ़िर वहां से ट्रेन में चढ़ा दिया जायेगा बहू, बच्चों और तिवारी जी को. सामान ट्रैक्टर से ही पहुंच जायेगा ग्वालियर. आखिर दूरी ही कितनी है झांसी से ग्वालियर की?
(क्रमश:)
 तस्वीर: गूगल सर्च से साभार



    


बुधवार, 28 अगस्त 2019

भदूकड़ा- (भाग-आठ)


(अब तक-
 आज कोई गम्भीर मसला सामने आने वाला था, तभी तो छोटी काकी ने घर के पुरुष वर्ग को नाश्ते के बाद चौके में ही रुके रहने को कहा था. क्या था ये मसला? पढ़िये-)

घर के सारे आदमियों ने नाश्ता कर लिया तो काकी की आवाज़ गूंजी-
अबै उठियो नईं लला. बैठे रओ. कछु जरूरी बात करनै है तुम सें.’
थाली में हाथ धोते बड़े दादा ने काकी की तरफ़ देखा, और थाली खिसका के वहीं बैठे रहे.
’इत्ते साल हो गये, हमने सुमित्रा खों कछु दुख दओ का?’
’आंहां कक्को’
’ऊए खाबे नईं दओ का?’
काय नईं? ऐन दओ तुमने.’
’तौ जा बताओ, सुमित्रा, जिए हम राजरानी मानत, जी की तारीफ़ करत मौं नईं पिरात हम औरन कौ, ऊ ने जा चोरी काय करी? औ केवल जा नईं, जानै कितेक दिनन सें कर रई. बा तौ आज बड़की रानी ने बात खोल दई...’
बड़े दादा अवाक!
सारे देवर आवाक!
चौके में बैठीं देवरानियां अवाक!
और रमा सबसे ज़्यादा अवाक!!
’जे देखो, सुमित्रा रानी ने कटोरी में पकौड़ीं निकार कें धर लईं औ तुमाय कोठा में लुका दईं.’
छोटी काकी ने आंचल में छुपाई, पकौड़ियों से भरी कटोरी निकाल के बड़े दादा के सामने रख दी! उन्हें कुन्ती ने एक-दो बार सुमित्रा द्वारा पूड़ियां छुपा के खाने की बात कुन्ती ने बताई थी पर उन्होंने टाल दी थी. लेकिन आज! ये तो बहुत खराब बात है. सुमित्रा को टेरा गया. लम्बा घूंघट किये सुमित्रा आ के खड़ी हो गयी ओट में. चौके के अन्दर रमा कसमसा रही थी. लेकिन बड़े दादा के सामने जाये कैसे...!
’छोटी बहू, ये क्या सुन रहा हूं मैं? तुमसे तो मुझे ऐसी उम्मीद ही नहीं थी. इस घर में आज तक किसी ने चोरी नहीं की. तुम इतने बड़े घर की , पढ़ी-लिखी लड़की हो के.....!
कटोरी सुमित्रा की तरफ़ सरका दी बड़े दादा ने. सुमित्रा को काटो तो खून नहीं! शर्मिंदगी के मारे उसे लगा कि धरती फट जाये, और वो उसमें समा जाये....!
कुन्ती मूंछों में मुस्कुरा रही थी ( भगवान ने उसे होंठ के ऊपर रोयों की एक गहरी रेख दी भी थी.)
’कुन्ती ने कई बार पूड़ियों बावत हमसे बताया, लेकिन हमने उसे गम्भीरता से नहीं लिया. लेकिन अब तो हद हो गयी.’
क्या!! कुन्ती ने बताया!!! उफ़्फ़..... सुमित्रा जी को चक्कर आ रहा था. लगा, अब और खड़ी न रह पायेंगीं. टप-टप टपकते आंसू, अब धार बन के उनके ही पांव भिगो रहे थे.
उधर चौके में बैठी रमा से अब न रहा गया. सारी मर्यादाओं को ताक पे रखती हुई घूंघट खींच, बड़े दादा और कक्को के बीच खड़ी हो गयी.
’कक्को, बड़के दादा आप औरें जैसौ सोच रय, वैसौ है नइयां. सुमित्रा जिज्जी ने कौनऊ चोरी न करी. जे पकौड़ियां तौ उनने बड़की जिज्जी के लाने धरवाईं हतीं. औ धरबे हम गये हते. औ रई बात पूड़ियन की, तौ बे सोई सुमित्रा जिज्जी अपने लाने, नईं, बड़की जिज्जी के लानै निकरवाउत हतीं. पूड़ी  भी हमई सें निकरवाईं उनने. हमै सब पतौ है. बे बिचारी तौ दुपारी लौ कछु खातींअईं नइयां.’ इतना कह के रमा भी फूट-फूट के रो पड़ी. अब एक बार फिर सबके अवाक होने की बारी थी. कुन्ती का चेहरा पीला पड़ गया. उसे मालूम ही नहीं था, कि सुमित्रा रमा को बता के सामान लाती है उनके लिये!! पहले सुमित्रा और अब बड़के दादा शर्मिन्दगी से गर्दन झुकाए थे. बस एक वाक्य निकला उनके मुंह से-
’हमें माफ़ कर देना छोटी बहू....’
सुमित्रा के लिये तो जैसे तारणहार बन के आई थी रमा! स्नेह तो पहले ही बहुत था दोनों के बीच, अब ये डोर और मजबूत हो गयी. उधर मामला उलट जाने से कुन्ती की रातों की नींद हराम हो गयी. बड़े दादाजी ने कुन्ती से बस इतना कहा था कि-’ अभी जो हुआ सो हुआ, अब आगे न हो, इस बात का ध्यान रखना बड़ी.’ लेकिन कहां ध्यान रख पाई थी कुन्ती? उसका मन तो अब नयी गुड़तान में लगा था कि कैसे बहुत जल्दी ही सुमित्रा को नीचा दिखाये. कैसे इस हार का बदला ले! उधर बड़े दादाजी ने उसी दिन अपने छोटे भाई, यानी तिवारी जी को पत्र लिख दिया कि-
’छोटे, आ के छोटी बहू को ले जाओ, तुरन्त.’
 तिवारी जी परेशान! बड़े दादा ऐसे लिख रहे! क्या किया होगा सुमित्रा ने? बड़े घर की लड़की है, पढ़ी-लिखी है, क्या जाने कुछ बोल-बाल दी हो!! अगर ऐसा हुआ तो कैसे सामना करेंगे बड़े दादा का? छोटा भाई, जिसने बचपन से केवल बड़े दादा को ही देखा था, मां-बाप, भाई हर रूप में, पता नहीं क्या-क्या सोच गये. पत्र मिलने के अगले दिन सबेरे ही चल दिये ग्वालियर से. हिचकते, सकुचाते तिवारी जी घर के पास पहुंचे तो बड़े दादा बाहर चबूतरे पर बैठे नज़र आये. तिवारी जी नज़रें झुकाये पहुंचे, कि जाने अब क्या विस्फोट हो. उधर बड़े दादा तिवारी जी से नज़रें चुरा रहे थे, जिसे तिवारी जी ने कुछ-कुछ महसूस किया. अगर सुमित्रा ने कोई गलती की होती तो बड़े दादा की आंखों से अंगारे बरस रहे होते.
 ’ का हो गओ दादा? इत्तौ अर्जेंट बुलउआ.... सब ठीक तौ है? कौनऊं ग़लती हो गयी होय, तौ माफ़ करियो, छोटो जान के.’ किसी प्रकार हिम्मत जुटा के बोले तिवारी जी.
उधर इतना सुनते ही, इतने सख्त दिखाई देने वाले बड़े दादा, भरभरा के रो पड़े. तिवारी जी इस औचक रुलाई के लिये बिल्कुल तैयार न थे.
सौजन्य: सभी तस्वीरें- गूगल सर्च से साभार

मंगलवार, 27 अगस्त 2019

भदूकड़ा- भाग सात


(पिछले अंक में-
बड़े दादाजी की शादी का जब ज़िक्र चला तो सुमित्रा जी को तुरन्त कुन्ती की याद आई. कुन्ती, जिसके ब्याह के लिये बाउजी कब से परेशान थे. लेकिन मंगली होने के कारण कोई बढ़िया रिश्ता ही न मिल रहा था. अब आनन-फ़ानन रिश्ता तय हो गया. ब्याह की तैयारियां होने लगीं. अब आगे-)

उधर जब कुन्ती को ये खबर लगी तो जैसे आग लग गयी उसके तन-बदन में. दुहैजू से ब्याहेंगे हमें? वो भी सुमित्रा के जेठ से!! दो-दो बच्चियों के बाप से! बचपन से लेकर सुमित्रा के जाने तक यहां दोनों के रूप-रंग की तुलना होती रही और अब ज़िन्दगी भर के लिये ससुराल में यही यातना भोगें!!! कुन्ती को लगा, हो न हो, सुमित्रा ने बदला लेने के लिये किया है ये सब. कुन्ती का दिमाग़ वैसे भी बदले जैसी बात ही सोच पाता था. खूब रोई-धोई मां के आगे. अम्मा ने समझाया, बड़के दादा ने समझाया, बड़की जिज्जी ने समझाया कि घर परिवार बहुत अच्छा है. और बड़े तिवारी जी तो एकदम देवता आदमी हैं. रानी बन के रहेगी. सबसे बड़ी बन के जा रही ससुराल में, तो पूरा परिवार इज़्ज़त देगा. अपनी दाल गलती न देख कुन्ती ने भी ठान लिया कि ठीक है सुमित्रा बेटा! जैसी आग तुमने लगाई हमारी ज़िन्दगी में, अब तुम लेना मज़ा उस तपन का.
और इस प्रकार कुन्ती, सुमित्रा की जेठानी बन, तिवारी परिवार में शामिल हो गयी. बस इसीलिये तिवारी जी ने कुन्ती के लिये ’भाभी’ सम्बोधन दिया था और अज्जू ने बड़ी मम्मी कहा था. और इसीलिये वे कभी भी साधिकार आ धमकती थीं, सुमित्रा के घर. सुमित्रा, जो बाद में तिवारी जी के साथ उनके नौकरी वाले स्थान पर चली गयी थी. ऐसे सुमित्रा जी कुन्ती को छोड़ के कभी न जातीं, लेकिन उनके इस जाने में भी तो पेंच है.
’मम्मी, आप कितनी देर से यहां बाल्कनी में बैठीं हैं! आज दिया नहीं जलाना क्या आपको?’ तनु, अज्जू की पत्नी और सुमित्रा जी की बहू ने आ के टोका तो सुमित्रा जी अतीत से बाहर निकलीं. लेकिन कुन्ती की इस तस्वीर ने उन्हें क्या-क्या तो याद दिला दिया था.....! फिर भी उठीं और पूजाघर की ओर चल दीं. आरती जलाई, घंटी उठाई बजाने के लिये..... घंटी... यानी गरुड़!! इसी गरुड़ के चलते तो बबाल हो गया था! ये अज्जू के जन्म के बाद की घटना है.
तब कुन्ती ब्याह के आ गयी थी इस घर में. सुमित्रा की वाहवाही सुन के कान पके जा रहे थे उसके. जिसे देखो उसे, वही सुमित्रा की माला फेर रहा!! और तो और, खुद कुन्ती से ही सुमित्रा की तारीफ़ किये जा रहा! कैसे बर्दाश्त करे कुन्ती!! यहां तक की बड़े दादा ( कुन्ती के पति) भी सुमित्रा की तारीफ़ कर रहे, कुन्ती से!!!! जली-भुनी कुन्ती अब मौक़े की तलाश में जुट गयी कि कैसे इस सुमित्रा को सबके सामने नीचा दिखाया जाये. उधर सुमित्रा जी कुन्ती की चिन्ता में अधमरी हुई जा रही थीं. कुन्ती को तो इतने काम की आदत नहीं...! कुन्ती को दूध रोटी पसन्द है.... और यहां तो बहुओं को दूध मिलता ही नहीं! कुन्ती को तो सबेरे से भूख लगने लगती है और यहां तो घर का पुरुष वर्ग जब खा लेता है, तब नाश्ता मिलता है!! अब चूंकि कुन्ती सबकी बड़ी बन के पहुंची थी सो काम तो उसे नहीं करने पड़ते थे लेकिन नाश्ते का क्या हो? सुमित्रा ने जुगत भिड़ाई. जब घर के आदमियों के लिये नाश्ते की पूड़ियां बनाई जायें, तब सुमित्रा जी अपनी देवरानी रमा से दो पूड़ियां मांग लिया करें. चूंकि सुमित्रा जी की झूठ बोलने की आदत नहीं थी, न ही चोरी की, सो वे किसके लिये चाहिये, ये बता के ही पूड़ियां निकलवाती थीं, चुपचाप. रमा और सुमित्रा जी के बीच गहरी छनती थी, और पूड़ियां बनाने का ज़िम्मा, रमा का ही था, बस इसीलिये वे अपनी मांग उसके सामने रख पाईं. रमा को भला क्या आपत्ति होती, सुमित्रा की मदद करने में? वो नियम से दो पूड़ियां निकाल के दे देती और सुमित्रा जी चुपके से जा के, कुन्ती के कमरे में कटोरी रख आतीं. कुन्ती यहां-वहां होती, तो खोज के उसे बता भी आतीं कि जाओ, खा लो. अब उन्हें क्या पता कि उन पूड़ियों का क्या हो रहा....!
उस दिन कढ़ी बन रही थी. सुमित्रा जी जानती थीं, कुन्ती को बेसन की पकौड़ियां कितनी पसन्द हैं. तुरन्त रमा से दस-बारह पकौड़ियां, कुन्ती के लिये अलग रखने को कह दिया. अज्जू छोटा था, तंग कर रहा था सो रमा को ही उन्होनें कह दिया कि वो जो कुन्ती की अटारी में खूंटे पर बड़ा टोकरा टंगा है न, उसी के अन्दर कटोरी रख देना, कुन्ती मिलेगी तो हम उसे कह देंगें. सुमित्रा जी अज्जू को बहलाने ले गयीं, रमा ने बताये हुए स्थान पर पकौड़ियों की कटोरी रख दी. आंगन में कुन्ती मिल गयी, तो सुमित्रा जी ने उसे धीरे से पकौड़ियां खाने को कह दिया. उधर, बेसन घोला ही गया था, तो आदमियों के लिये भी नाश्ते में प्याज़ के पकौड़े बना दिये गये. छोटी काकी ने बड़े दादा और चाचा लोगों को आवाज़ दे के जीमने बुलाया. चौके के बाहर. सब बैठे, लाइन से, जैसे बैठते थे. सबके सामने नाश्ते की प्लेटें आने वाली थीं, इतने में कुन्ती ने छोटी काकी को कमरे में बुलाया. कक्को जब लौटीं, तो उनके चेहरे पर हवाइयां उड़ रहीं थीं. दुख और क्रोध साफ़ देखा जा सकता था उनके मुख-मंडल पर. घर के सारे आदमियों ने नाश्ता कर लिया तो काकी की आवाज़ गूंजी-
अबै उठियो नईं लला. बैठे रओ. कछु जरूरी बात करनै है तुम सें.’
(क्रमश:)

सोमवार, 26 अगस्त 2019

भदूकड़ा- (भाग-6)

(अब तक आपने पढ़ा......
सुमित्रा जी यानी सीधी सरल महिला. लेकिन उनके जीवन में उनकी ही बहन कुन्ती ने उथल-पुथल मचा दी. तरह तरह के नुस्खे आजमाती कुन्ती और उन्हें झेलती सुमित्रा. आइये पढ़ें इन बहनों की ज़िन्दगी से जुड़े अन्य किस्से और शान्त करें अपनी जिज्ञासा)

अज्जू ने आनन-फानन सुमित्रा जी की फ़ेसबुक आईडी बना दी, और घर के तमाम रिश्तेदारों के पास उनका मित्रता अनुरोध भेज दिया. कुछ लोगों ने, जो उस वक़्त ऑनलाइन रहे होंगे, दनादन अनुरोध स्वीकार कर, सुमित्रा जी की वॉल पर चमकना भी शुरु कर दिया. सुमित्रा जी ये अजूबा देख अचम्भित थीं और प्रसन्न भी. परिवार के लड़के-बच्चों को पहचान-पहचान के किलक रही थीं. मज़े की बात, पूरे खानदान का काम फ़ेसबुक पर तस्वीरें पोस्ट करना ही था, सो पल-पल की तस्वीरें अब सुमित्रा जी को मिल पा रही थीं. किशोर दादा की वॉल पर कुंती, कवर फोटो बनी चमक रही थी. तस्वीर पुरानी थी, उतनी ही पुरानी, जितनी सुमित्रा जी की यादों को फ़िर हवा दे दे.....!

तस्वीर में कुन्ती के गले में वही मोटी चेन दमक रही थी, जो सुमित्रा जी को उनकी अम्मा ने अज्जू के जन्म पर दी थी, और जो ससुराल आने के दूसरे ही दिन ग़ायब हो गयी थी....!
अब आप सोचेंगे कि सुमित्रा जी अपनी ससुराल गयीं, तो वहां चेन ग़ायब हुई. हम कुन्ती को क्यों बीच में फ़ंसा रहे? लेकिन भाईसाब, हम फ़ंसा नहीं रहे, वे तो खुद ही फ़ंसी-फ़साईं हैं. हुआ यूं, कि बड़की बिन्नू के जन्म के बाद सुमित्रा जी की अम्मा ने कुन्ती को भी सुमित्रा के साथ भेज दिया था, मदद के लिये. चेन ग़ायब हुई तो अतिसंकोची सुमित्रा जी ने ये बात केवल कुन्ती को बताई और कुन्ती ने उसका बतंगड़ बना दिया. खूब रोना-धोना मचाया कि चेन हमने चुरा ली क्या? कुन्ती की बुक्का फ़ाड़ रुलाई से घबराई सुमित्रा जी ने किसी प्रकार उन्हें चुप कराया. भरोसा दिलाया कि वे कुन्ती पर शक़ नहीं कर रहीं. बाद में ये चेन सुमित्रा जी ने कुन्ती के बक्से में देख ली थी, रूमाल में लिपटी हुई, लेकिन उन्होंने कहा कुछ नहीं. और कुन्ती की बेशर्मी देखिये, वही चेन पहने फोटो भी खिंचवा ली!!
ऐसे एक नहीं, सैकड़ों वाक़ये हैं. कुछ ख़ास-ख़ास हम गिनायेंगे भी, लेकिन पहले ये तो जान लीजिये कि कुन्ती, तिवारी जी की भाभी कैसे हो गयीं? किस ग़लती के बारे में सुमित्रा जी सोच रही थीं?                                             
 तो हुआ यों, कि सुमित्रा जी के ससुराल पहुंचने के दो साल बाद ही, उनकी जेठानी का देहान्त हो गया. इतनी कच्ची उमर में उनका जाना सबको हिला गया. जेठ जी भी बिल्कुल नई उमर के थे. दो छोटी-छोटी बच्चियों की ज़िम्मेदारी...। परिवार वालों ने बहुत समझाया, तब जा के जेठ जी माने. उधर कुन्ती भी ब्याह लायक़ हो गयी थी, लेकिन एक तो उसका रंग-रूप, दूसरा स्वभाव और उस पर कुंडली में बैठा मंगल! सुमित्रा की शादी जितनी आसानी से हुई थी, कुन्ती के लिये पांडे जी को उतना ही परेशान होना पड़ रहा था. पंडित जी ने कहा था कि या तो लड़का भी मंगली हो या फिर विधुर हो. ऐसे में सुमित्रा जी को लगा कि यदि कुन्ती का ब्याह जेठ जी से हो जाये, तो पिताजी की परेशानी तो दूर होगी ही, कुन्ती को भी एक बेहद सज्जन पति और प्यार करने वाली ससुराल मिल जायेगी. हम दोनों बहनें यहां मिलजुल के रहेंगीं. ये सोचते हुए सुमित्रा जी भूल गयीं, कि कुन्ती और उनके साथ मिलजुल के रहेगी!!! बस यहीं मात खा गयीं सुमित्रा जी. घर में जब छोटी काकी से सुमित्रा जी ने इस सम्बन्ध की बात चलाई तो पूरा परिवार सहर्ष तैयार हो गया, क्योंकि उनके मन में तो सुमित्रा जी की छवि बैठी थी. सबने सोचा, ऐसी ही छोटी बहन भी होगी! जेठ जी भी इसी मुगालते में हां कह बैठे. आनन-फानन ब्याह की तैयारियां होने लगीं दोनों तरफ़.
(क्रमश:)