बुधवार, 12 अगस्त 2009

इस्मत जैदी की गजल



  • मैं जा रहा हूँ मेरा इंतज़ार मत करना ,
    और अपनी आंखों को भी अश्कबार मत करना ।


  • ग़रीब दोस्त हूँ कर पाउँगा नहीं पूरी ,
    के ख्वाहिशें कभी तुम बेशुमार मत करना।


  • ये जानता हूँ के तखरीब तेरी आदत है,
    हरे हैं खेत इन्हें रेगज़ार मत करना ।


  • मुझे तो मेरे बुजुर्गों ने ये सिखाया है,
    के दुश्मनों पे भी तुम छुप के वार मत करना।


  • मेरी हलाल की रोज़ी मुझे सुकूँ देगी,
    इनायतों से मुझे ज़ेर बार मत करना।


  • क़दम तुम्हारा सियासत में गर जमे, न जमे,
    ज़मीर अपना मगर दाग़ दार मत करना।


  • जो वालेदैन ने अब तक तुम्हें सिखाया है ,
    अमल करो न करो शर्मसार मत करना ।


  • सड़क भी देंगे वो पानी भी और उजाला भी,
    सुनहरे वादे हैं बस ऐतबार मत करना।


  • जो सच है जान लो फिर कोई फ़ैसला देना
    बिना पे शक की कभी इश्तहार मत करना ।


  • (यह ग़ज़ल मेरी परम मित्र इस्मत जैदी की है। ख़ास बात यह है कि लंबे समय तक इस्मत केवल गद्य की विधा में ही लिखती रहीं। तमाम आलेख और कहानियां उनके नाम पर दर्ज हैं। लेकिन इधर कुछ समय से उन्होंने पद्य की विधा में लिखना शुरू किया है और माशा अल्लाह क्या खूब किया है। )