सुमित्रा जी का रहन सहन सब शुरु में ही जान गये थे. बड़े भाईसाब ने ताकीद कर
दिया था सबको कि इतने बड़े अफ़सर के घर की पढ़ी-लिखी लड़की है सो कोई भी उल्टी-सीधी
बात न हो उससे. तहसीलदार साब ने बड़े नाज़ों से पाला है अपनी बेटियों को, इस बात का
भी ख़याल रखा जाये. उसे रसोई के अलावा और कोई काम न दिया जाये. आदि-आदि. इतने बड़े
काश्तकार थे तिवारी जी, लेकिन जैसा कि मैने बताया इनके परिवार के रहन-सहन का स्तर
शुद्ध देहाती था, अपने ही खेतों पर काम करने वाले ढेरों मजदूरों के होते हुए भी घर
की लिपाई-पुताई का काम बहुएं करतीं. दोपहर में कंडे पाथने का काम भी बहुएं ही
करतीं, घर के पीछे बनी गौशाला में जा के. भगवान की दया से गौशाला में पच्चीस
दुधारू गाय-भैंसें थीं. सो घर में घी-दूध पर्याप्त था, लेकिन दूध पीने के लिये
केवल घर के मर्दों को या छोटे बच्चों को दिया जाता. बाकी जमा दिया जाता. रोज़ दही
मथता, लेकिन क्या मज़ाल कोई मक्खन की एक डली उठा ले. सबका घी बना के बड़े-बड़े मटकों
में सहेज दिया जाता. खेतिहर परिवारों में आय का ज़रिया केवल फ़सल होती है. उसी से
शादी-ब्याह और अन्य कार्यक्रम सम्पन्न होते. ऐसे में घी इकट्ठा करना ज़रूरी था. वो
समय बाज़ार से घी आने का नहीं था न. डालडा और रिफ़ाइंड तेल भी नहीं चलते थे. हर काम
शुद्ध घी में ही होता था. रोज़ रात के खाने में घर के पुरुषों को एक-एक कटोरा दूध
दिया जाता, खूब पका हुआ. छोटे बच्चों को पिलाने के लिये भी दूध मिलता लेकिन निकाल
के देतीं छोटी काकी ही. बहुएं दूध-घी नहीं निकाल सकती थीं. इतने सबके बाद भी
सुमित्रा जी को कोई शिक़ायत नहीं थी अपनी ससुराल से. उनकी मां ने उन्हें “स्त्री सुबोधिनी”
दी थी पढ़ने को, जिसमें लिखा था कि लड़की का स्वर्ग ससुराल ही है. मायके से डोली और
ससुराल से अर्थी निकलती है. पति के चरणों की दासी बनने वाली औरतें सर्वश्रेष्ठ
होती हैं. आदि-आदि.... और भोली भाली सुमित्रा जी ने सारी बातें जैसे आत्मसात कर ली
थीं. सब मज़े से चल रहा था अगर वो घटना न होती तो..... उस घटना ने तो जैसे सुमित्रा
जी का जीवन नर्क बना दिया... ! कितनी बड़ी ग़लती हुई उनसे.... लेकिन अब क्या? अब तो
हो गयी.
“ मम्मी..... ये लो तुम्हारा नया मोबाइल. सबके पास स्मार्ट फोन था घर में
तुम्हें छोड़ के. लो पकड़ो. अब इसमें व्हाट्स एप के ज़रिये तुम सारे रिश्तेदारों से
जुड़ी रहोगी. उनके फोटो-शोटो भी देख पाओगी.”
ऑफ़िस से घर आते ही अज्जू ने सुमित्रा जी को खुशखबर दी.
“लेकिन बेटा ये टच स्क्रीन वाला फोन हम कैसे चला पायेंगे?”
“क्यों नहीं चला पाओगी? अरे जब पापा चला लेते हैं तो तुम्हें क्या दिक़्क़त है?
हाथ में तो लो. पास में रहेगा तभी न चलाना सीखोगी.”
सुमित्रा जी ने मोबाइल हाथ में ले के देखा. बढ़िया सेट था. सीख लेंगीं अज्जू से
लिखना, फोटो भेजना , दूसरे के फोटो देखना सब.
“मम्मी तुम्हारी फेसबुक पर भी आईडी बना दूंगा. वहां सुरेश, रमेश भैया लोगों की
आईडी है, तो आप अपने गांव के सारे रिश्तेदारों की तस्वीरें तो देख ही लेंगीं कम से
कम. भैया लोग बड़ी मम्मी की तस्वीरें भी पोस्ट करते रहते हैं. पूरा खानदान है
फेसबुक पर हमारे ददिहाल और ननिहाल का. होना ही चाहिये था.”
“ तो तुमने अब तक क्यों नहीं दिखाईं किसी की तस्वीरें?
“येल्लो.... एक बार दिखा देता तो रोज़-रोज़ का टंटा न हो जाता? फिर तुम्हें रोज़
दिखाओ कि किसने क्या पोस्ट किया.” ठठा के हंस दिया अज्जू.
(क्रमश:)