अब किसी को भी नज़र आती नहीं कोई दरार
घर की हर दीवार पर चिपके हैं इतने इश्तहार।
आप बचकर चल सकें ऐसी कोई सूरत नहीं,
रह्गुज़र घेरे हुए मुरदे खडे हैं बेशुमार।
मैं बहुत कुछ सोचता रहता हूं पर कहता नहीं
बोलना भी है मना, सच बोलना तो दरकिनार.
इस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-ज़ुर्म हैं,
आदमी या तो जमानत पर रिहा है या फरार.
आप बचकर चल सकें ऐसी कोई सूरत नहीं,
जवाब देंहटाएंरह्गुज़र घेरे हुए मुरदे खडे हैं बेशुमार।
gahan abhivyakti...
zameer mar gaya ...insaan chalti phirti laash me tabdeel ho gaya....
सटीक ..अच्छी लगी रचना
जवाब देंहटाएंइस सिरे से उस सिरे तक सब शरीके-ज़ुर्म हैं,
जवाब देंहटाएंआदमी या तो जमानत पर रिहा है या फरार.....
हम आपकी बात इस बात से बिल्कुल सहमत हैं दोस्त जी :)
सुन्दर रचना |