मुट्ठी भर दिन चुटकी भर रातें, गगन सी चिंताएँ, किसको बताएं? जागती सी रातें, दिन हुए उनींदे, समय का विलोम कैसे सुलझाएं? भागती सी सड़कें, खाली नहीं आसमान, दो घड़ी का सन्नाटा , हम कहाँ से पायें?
मुझे वह गीत याद आया ..दिन खाली खाली बर्तन है और रात है एक अन्धा कुआँ .देखिये इस तरह की निराशा वादी कवितायें लिखने का अब समय नहीं है उठिये और अपने भीतर आशा का संचार कीजिये .इसके लिये क्या करना होगा ..यह ब्रेक के बाद
कम शब्दों में कई रंग परोसे हैं आपने. एक पूरा आसमान भी सुकून नहीं देता तो कहाँ भटके बेसहारा मन ! ऋतज जैसी छोटी और प्यारी-सी कविता के लिए आपको साधुवाद दे देना कम लगता है वंदनाजी !
वंदना जी , आपका ईमेल मिला उससे पहले कबीरा पर अनुसरण में देख चुका था , पसंद करने और प्रशंसा करने आदि सभी का धन्यवाद ,आभारी हूँ || मैंने भी आप जैसी समस्या कहीं कंही पाई थी ,लीजिये आप की समस्या का हल कर दिया क्यों की ज्योति जी तथा कई अन्यो ने भी यही शिकायत की थी | आप से अनुरोध है की '' पिटारा टूल हिंदी ब्राउज़र ''डाउन -लोड कर लें उसमें कई अनोखी सुविधाएँ हैं | मैं यह टिप्पणी सीधे आप के टिप्पणी बॉक्स में ही टाइप कर रह हूँ | जहाँ यह सुविधा काम न करेगी वहां के लिए टूल में गूगल इंडिक में टाइप कर कॉपी-पेस्ट कर सकतें हैं ; हाँ इस गूगल इंडिक से कॉपी के लिए ctrl+c का और इस में पेस्ट के लिए ctrl+v का प्रयोग करना पड़ेगा | इस प्रकार कॉपी करते समय जरा अतिरिक्त सावधानी रखनी पड़ेगी वरना सारे किये धरे पर सफाटा फिर जायगा जैसा अभी मेरे साथ हुआ है | हेम पाण्डे जी के ब्लॉग-पोस्ट पर टिप्पणी करते समय ; झल्ला कर इधर चला आया हूँ क्यूँ की लम्बी टिप्पणी करता हूँ इस लिए ज्याद खलता है ; आप भी सोच रही होंगी कैसा इन्सान है जो इतना लम्बा लिख गया और पोस्ट के बारे में कुछ नहीं कहा| तो :..........
गगन सी चिंताएँ, किसको बताएं? जागती सी रातें, दिन हुए उनींदे, समय का विलोम कैसे सुलझाएं?
जो पंक्तियाँ मैंने ऊपर चयनित की हैं , वही मेरी दृष्टि में इस की पञ्च लाइन है , और वही आपकी इस रचना में आप की लेखनी को जीवंत कराती है |
धन्यवाद ...क्या सम्बोधन दूं नही जानती अगर आपका नाम जान सकूं तो आभारी रहूंगी. तमाम जानकारियों के लिये भी धन्यवाद. वैसे मैं हिन्दी लिखने के लिये बारहा का इस्तेमाल करती हूं.
" ek akela is shahar me..raat me yaa dopahar me....." aapki rachna ne mujhe barbas hi is geet ki yaad dilaa di, halanki aapki rachna aour is geet me kaafi antar he, kintu yaad ho aayaa to bs ho aaya./// saar kuchh isi tarah ka laga. ------------ bs yahi chahtaa hoo aour sab kuchh dhire dhire haatho se chhotataa jaataa he.../// भागती सी सड़कें, खाली नहीं आसमान, दो घड़ी का सन्नाटा , हम कहाँ से पायें? ---------
वंदना जी , आप के धन्यवाद का आप को धन्यवाद ,यूँही मुलाकातें होती रहीं तो नाम भी पता चल जायेगा , वैसे बकौल सिकंदर मिर्जा उनके ''शेख पियारा'' ने कहा है कि नाम में क्या रखा है [ अंग्रेजों ने यह नाम चुरा कर शेक्सपियर कर दिया है ऐसा वे कहा करते थे ]|मुझे ख्याल आया तो फिर अल ब्रह्मिण का बिगड़ते बिगड़ते अल ब्राह्मिन ====> अल ब्रहामिन ===>इल ब्रहामिन==> इब्राहमिन [मिर्जा साहब अब तक लाहौल बुदबुदाना शुरू कर चुके थे ] ===> इब्राहीम होगया होना भी सही हो सकता है ? मिर्जा ने जोर जोर से मेरे नाम कि लाहौल पढ़ते पिक थूकी और गुस्से से बोले इसी लिए तो म्यां तुम्हें शायरी का शहूर नहीं आया ,इसी लिए तुमसे मई कोइ भेद कीबात नहीं बताता न अदब अदाब की बात करता हूँ | माफ़ कीजियेगा वंदना जी इस वक्त इस बात का कोइ औचित्य नहीं था , पता नहीं कहाँ से दिमाग में आगई और पेट में गैस उठने लगीं ,जुबान खुजलाने लगीं उंगलिया कुलबुलाने लगीं और मैं मज़बूर हो गया कहने को | पुनः माफ़ कर दीजियेगा
समय का विलोम कैसे सुलझाएं? भागती सी सड़कें, vikas ka muly chukana hoga ,suvidhbhogi yantr yntrna ban rhe hai jeevan ke liye . ytharth drshati sundr rchna .
Kuchh Khas nahi laga par jab itane log tarif pe tarif kiye ja rahe hain to main bhi kar hi de raha hun..Vaise badhiya likha hai apne. loktantra hai bahumat ka jamana...
नहीं मनोज जी, आप आलोचना भी कर सकते हैं.लोकतन्त्र है, इसीलिये तो आप अपनी बात आज़ादी के साथ कह सकते हैं. ज़रूरी नहीं कि बहुमत के साथ ही जाने पर मजबूर हुआ जाये.
मन जब होता शुष्क, स्नेह की चाहत हो ही जाती. कछ कहने को जी करता, कोई पाना चाहे पाती. पाना चाहे पाती, दूरसे हाल-चाल कोई पूछे. बतियाये कानों में, हो गुदगुदी तो मनवा रीझे. कह साधक इन भावों की वन्दना करूँ मन करता. स्नेह की चाहत हो जाती है, शुष्क मन जब होता.
भागती सी सड़कें,
जवाब देंहटाएंखाली नहीं आसमान,
दो घड़ी का सन्नाटा ,
हम कहाँ से पायें?
बहुत ही सही कही है आपने .........समसाम्यिक भी है .........कई और शेडस निकल रहे है आपकी रचना से .........बहुत ही सुन्दर बधाई
atynt bhavpurn rachana..
जवाब देंहटाएंdil se padhane yogy..
bahut bahut badhayi...
खुद के भीतर जायें और सन्नाटा पायें, वहां किसी की पहुंच नहीं है । बहुत बढिया अभिव्यक्ति है । संक्षिप्त और सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना है
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम
behtareen kavita aapne......likha
जवाब देंहटाएं'समय का विलोम
जवाब देंहटाएंकैसे सुलझाएं? '
बहुत खूब!
सरल शब्दों में भावों की अभिव्यक्ति में सफल बहुत ही अच्छी कविता है वंदना जी..
Sach me vartmaan jeevan ka sahi khaaka kheec rahi hai aapki yeh rachna...
जवाब देंहटाएंवन्दना जी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति है।
"सतसैय्या के दोहरे,ज्यों नाविक के तीर।
देखन छोटे लगें, घाव करें गम्भीर।।"
ओम जी,विनोद जी,अर्कजेश जी,नज़र जी,अलीम जी,अल्पना जी, मोनाली जी और शास्त्री जी आप सब की तहे दिल से आभारी हूं.
जवाब देंहटाएंसमय का विलोम
जवाब देंहटाएंकैसे सुलझाएं?
-क्या बात है! बेहतरीन!
वाह वंदना जी क्या बात है! बहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंमीठी रचना कहूं या सुन्दर.......कुछ भी हो, बेहद पसंद आया मुझे!
बहुत दिनों बाद आये हैं,समीर जी आप...याद रखियेगा.
जवाब देंहटाएंअरुणा जी ,आपकी टिप्पणी भी बहुत मीठी है...बस इसी तरह मिठास घोलती रहें हमारे रिश्ते में भी..
जवाब देंहटाएंमुझे वह गीत याद आया ..दिन खाली खाली बर्तन है और रात है एक अन्धा कुआँ .देखिये इस तरह की निराशा वादी कवितायें लिखने का अब समय नहीं है उठिये और अपने भीतर आशा का संचार कीजिये .इसके लिये क्या करना होगा ..यह ब्रेक के बाद
जवाब देंहटाएंmarm chhoone wali
जवाब देंहटाएंkomalkant kavita.....
atyant uttam kavita...
____badhaai !
ज़रूर शरद जी. मुझे ब्रेक खत्म होने का इन्तज़ार रहेगा.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अलबेला जी. बस ऐसे ही आते रहिये..
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar .saath me ek yaad bhi taaza hui .
जवाब देंहटाएंआपकी ख़ास शैली में ख़ास भावों से सजी कविता सुन्दर है , अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंअरे वाह, बढी गजब की रचना है ये तो। कम शब्दों में ऐसी अदभुत रचना पहले नहीं देखी।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
@धन्यवाद ज्योति जी. हमारी-आपकी यादें साझा जो हैं.
जवाब देंहटाएं@धन्यवाद दूं क्या किशोर जी??
@ज़ाकिर जी अतिशय तारीफ़ के लिये शुक्रिया...ये आपका बडप्पन है.
कम शब्दों में कई रंग परोसे हैं आपने. एक पूरा आसमान भी सुकून नहीं देता तो कहाँ भटके बेसहारा मन ! ऋतज जैसी छोटी और प्यारी-सी कविता के लिए आपको साधुवाद दे देना कम लगता है वंदनाजी !
जवाब देंहटाएंgood
जवाब देंहटाएंआनंद जी( सप्रयास सम्बोधन लिखने में भी तकलीफ़देह ही है) लगता है, अपनी ही कविता एक बार फिर पढनी होगी...क्या लिखा है मैने??
जवाब देंहटाएंवंदना जी ,
जवाब देंहटाएंआपका ईमेल मिला उससे पहले कबीरा पर अनुसरण में देख चुका था , पसंद करने और प्रशंसा करने आदि सभी का धन्यवाद ,आभारी हूँ ||
मैंने भी आप जैसी समस्या कहीं कंही पाई थी ,लीजिये आप की समस्या का हल कर दिया क्यों की ज्योति जी तथा कई अन्यो ने भी यही शिकायत की थी |
आप से अनुरोध है की '' पिटारा टूल हिंदी ब्राउज़र ''डाउन -लोड कर लें उसमें कई अनोखी सुविधाएँ हैं | मैं यह टिप्पणी सीधे आप के टिप्पणी बॉक्स में ही टाइप कर रह हूँ | जहाँ यह सुविधा काम न करेगी वहां के लिए टूल में गूगल इंडिक में टाइप कर कॉपी-पेस्ट कर सकतें हैं ; हाँ इस गूगल इंडिक से कॉपी के लिए ctrl+c का और इस में पेस्ट के लिए ctrl+v का प्रयोग करना पड़ेगा | इस प्रकार कॉपी करते समय जरा अतिरिक्त सावधानी रखनी पड़ेगी वरना सारे किये धरे पर सफाटा फिर जायगा जैसा अभी मेरे साथ हुआ है | हेम पाण्डे जी के ब्लॉग-पोस्ट पर टिप्पणी करते समय ; झल्ला कर इधर चला आया हूँ क्यूँ की लम्बी टिप्पणी करता हूँ इस लिए ज्याद खलता है ; आप भी सोच रही होंगी कैसा इन्सान है जो इतना लम्बा लिख गया और पोस्ट के बारे में कुछ नहीं कहा|
तो :..........
गगन सी चिंताएँ,
किसको बताएं?
जागती सी रातें,
दिन हुए उनींदे,
समय का विलोम
कैसे सुलझाएं?
जो पंक्तियाँ मैंने ऊपर चयनित की हैं , वही मेरी दृष्टि में इस की पञ्च लाइन है , और वही आपकी इस रचना में आप की लेखनी को जीवंत कराती है |
धन्यवाद ...क्या सम्बोधन दूं नही जानती अगर आपका नाम जान सकूं तो आभारी रहूंगी. तमाम जानकारियों के लिये भी धन्यवाद. वैसे मैं हिन्दी लिखने के लिये बारहा का इस्तेमाल करती हूं.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब बहुत ही सुन्दर रचना आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना बधाई.
जवाब देंहटाएंGyan aur darshan se yukt kavita bahut kuchh kah rahi hai.rachna pathneey bhi hai aur mananeey bhi dil se badhai.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनिल जी,तीसरी आंख के सम्पादक जी, और प्रेम जी.
जवाब देंहटाएं" ek akela is shahar me..raat me yaa dopahar me....."
जवाब देंहटाएंaapki rachna ne mujhe barbas hi is geet ki yaad dilaa di, halanki aapki rachna aour is geet me kaafi antar he, kintu yaad ho aayaa to bs ho aaya./// saar kuchh isi tarah ka laga.
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bs yahi chahtaa hoo aour sab kuchh dhire dhire haatho se chhotataa jaataa he.../// भागती सी सड़कें,
खाली नहीं आसमान,
दो घड़ी का सन्नाटा ,
हम कहाँ से पायें?
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सरल शब्दो मे सुन्दर अभिव्यक्ति,मन को छूती रचना
जवाब देंहटाएंवाह, छोटी-छोटी पंक्तियों में बहुत गहराई.. आभार
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अमिताभ जी, विक्रम जी.
जवाब देंहटाएंअरे वाह आशीष जी, आपने तो सचमुच ही अपना वायदा निभाया है.....ब्लौग पर आने और टिप्पणी करने के लिये साधुवाद.
जवाब देंहटाएंवंदना जी ,
जवाब देंहटाएंआप के धन्यवाद का आप को धन्यवाद ,यूँही मुलाकातें होती रहीं तो नाम भी पता चल जायेगा , वैसे बकौल सिकंदर मिर्जा उनके ''शेख पियारा'' ने कहा है कि नाम में क्या रखा है [ अंग्रेजों ने यह नाम चुरा कर शेक्सपियर कर दिया है ऐसा वे कहा करते थे ]|मुझे ख्याल आया तो फिर अल ब्रह्मिण का बिगड़ते बिगड़ते अल ब्राह्मिन ====> अल ब्रहामिन ===>इल ब्रहामिन==> इब्राहमिन [मिर्जा साहब अब तक लाहौल बुदबुदाना शुरू कर चुके थे ] ===> इब्राहीम होगया होना भी सही हो सकता है ? मिर्जा ने जोर जोर से मेरे नाम कि लाहौल पढ़ते पिक थूकी और गुस्से से बोले इसी लिए तो म्यां तुम्हें शायरी का शहूर नहीं आया ,इसी लिए तुमसे मई कोइ भेद कीबात नहीं बताता न अदब अदाब की बात करता हूँ |
माफ़ कीजियेगा वंदना जी इस वक्त इस बात का कोइ औचित्य नहीं था , पता नहीं कहाँ से दिमाग में आगई और पेट में गैस उठने लगीं ,जुबान खुजलाने लगीं उंगलिया कुलबुलाने लगीं और मैं मज़बूर हो गया कहने को |
पुनः माफ़ कर दीजियेगा
बहुत ही अच्छा लगा आपका ब्लॉग.....और अत्यंत ही उम्दा आपकी रचनाएं....सच....!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भूतनाथ जी.
जवाब देंहटाएंसमय का विलोम
जवाब देंहटाएंकैसे सुलझाएं?
भागती सी सड़कें,
vikas ka muly chukana hoga ,suvidhbhogi yantr yntrna ban rhe hai jeevan ke liye .
ytharth drshati sundr rchna .
sab bhag rahe hain pata nahi kahan
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शोभना जी,महेश जी.
जवाब देंहटाएंbhut hi achha likha hai aapne specially
जवाब देंहटाएंdo ghadi sannata kahan se ppaye hum?
बहुत-बहुत धन्यवाद निधि जी.
जवाब देंहटाएंमुट्टी भर दिन
जवाब देंहटाएंचुटकी भर रातें
गगन की चिंताएँ
किसको बताएं
सुंदर और सार्थक रचना .....!!
मुट्टी भर दिन
जवाब देंहटाएंचुटकी भर रातें
गगन की चिंताएँ
किसको बताएं
सुंदर और सार्थक रचना .....!!
बहुत ही सार्थक रचना..
जवाब देंहटाएंIshwar kare saraswati aapki kalm par sadaiv vidhmaan rahe.
जवाब देंहटाएंSatyendra
धन्यवाद सैयद जी.
जवाब देंहटाएंअरे वाह सत्येन्द्र जी...आपकी टिप्पणी देख कर कितना अच्छा लग रहा है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर, सरल-सहज कविता।
जवाब देंहटाएंKuchh Khas nahi laga par jab itane log tarif pe tarif kiye ja rahe hain to main bhi kar hi de raha hun..Vaise badhiya likha hai apne. loktantra hai bahumat ka jamana...
जवाब देंहटाएंनहीं मनोज जी, आप आलोचना भी कर सकते हैं.लोकतन्त्र है, इसीलिये तो आप अपनी बात आज़ादी के साथ कह सकते हैं. ज़रूरी नहीं कि बहुमत के साथ ही जाने पर मजबूर हुआ जाये.
जवाब देंहटाएंमुट्टी भर दिन
जवाब देंहटाएंचुटकी भर रातें
गगन की चिंताएँ
किसको बताएं
sundar rachna
Aayi to thee,aapki khoobsoorat tippanee ke liye shikriya kahne..
जवाब देंहटाएंLekin ye rachna padhee..sirf itnaahee kah sakti hun,'waah!'
Ab kissa padh ke phir tippanee..Ye to kewal kavy rachnako leke thee...
http:/shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
मन जब होता शुष्क, स्नेह की चाहत हो ही जाती.
जवाब देंहटाएंकछ कहने को जी करता, कोई पाना चाहे पाती.
पाना चाहे पाती, दूरसे हाल-चाल कोई पूछे.
बतियाये कानों में, हो गुदगुदी तो मनवा रीझे.
कह साधक इन भावों की वन्दना करूँ मन करता.
स्नेह की चाहत हो जाती है, शुष्क मन जब होता.
Sundar, saral, bhaavpurn rachna!
जवाब देंहटाएंbahut hi saras, khubsurat...bahut achchhi rachna
जवाब देंहटाएं