शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

मेरी पसंद....

जिन्हें अच्छे बुरे हर हाल में रब याद आता है

भुलाना चाहता हूं मैं मगर सब याद आता है
तेरी यादों ने बख़्शा है जो मन्सब याद आता है

सितम बे-महर रातों का मुझे जब याद आता है
इन्हीं तारीकियों में था जो नख़्शब याद आता है

हर इक इंसान उलझा है यहां अपने मसाइल में
परेशां और भी होंगे किसे कब याद आता है

दलीलों के लिए तो सैकड़ों पहलू भी हैं लेकिन
जो सोचूं तो मुझे अच्छा बुरा सब याद आता है

वहां की सादगी में दर्स है रिश्तों की अज़मत का
जिसे तुम गांव कहते हो वो मकतब याद आता है

लिया है काम ऐसे भी सियासत ने अक़ायद से
उठाने हों अगर फ़ितने तो मज़हब याद आता है

हैं बंदे तो सभी लेकिन वो मोमिन हो गए ’शाहिद’
जिन्हें अच्छे बुरे हर हाल में रब याद आता है

शाहिद मिर्ज़ा "शाहिद"

26 टिप्‍पणियां:

  1. वंदना ,तुम्हारा ये ब्लॉग मुझे बहुत पसंद है क्योंकि
    तुम्हारी पसंद बहुत मेयारी है ,हिंदी हो या उर्दू हमेशा अच्छा ही पढ़ने को मिलता है


    वहां की सादगी में दर्स है रिश्तों की अज़मत का
    जिसे तुम गांव कहते हो वो मकतब याद आता है

    बहुत ख़ूबसूरत शेर है सच है आज भी जो संस्कार जो तहज़ीब गांव में है वो और कहीं नहीं

    लिया है काम ऐसे भी सियासत ने अक़ायद से
    उठाने हों अगर फ़ितने तो मज़हब याद आता है

    ये शेर भी सियासी हथकंडों की पोल खोल कर रख देता है,हक़ीक़त यही है

    अपनी पसंद के लिए शाहिद साहब को और तुम्हें बहुत बहुत बधाई

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  2. वहां की सादगी में दर्स है रिश्तों की अज़मत का
    जिसे तुम गांव कहते हो वो मकतब याद आता है

    लिया है काम ऐसे भी सियासत ने अक़ायद से
    उठाने हों अगर फ़ितने तो मज़हब याद आता है
    शाहिद जी की गज़ल मे जादू होता है तभी तो हर कोई उन्हें गुनगुनाने-- पढने पढवाने को लालायित रहता है। ये ऊपर के शेर कमाल हैं। धन्यवाद।

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  3. आप जब भी किसी और का यहाँ पढने के लिये पोस्ट करती हैं तो वो बहुत खास होता है.....

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  4. दलीलों के लिए तो सैकड़ों पहलू भी हैं लेकिन
    जो सोचूं तो मुझे अच्छा बुरा सब याद आता है
    बहुत खुब जी, अति सुंदर लगी आप की गजल. धन्यवाद

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  5. नाचीज़ की ग़ज़ल को ......
    ’मेरी पसन्द’
    में ......
    जगह देकर ......
    आपने इसकी अहमियत को और बढ़ा दिया है.
    हालांकि आपके ख़लूस के लिये...
    ये लफ़्ज़ नाकाफ़ी हैं...
    फिर भी...................
    बहुत बहुत धन्यवाद वन्दना जी.

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  6. शाहिद मिर्ज़ा "शाहिद" जी की सुन्दर गजल पढ़वाने के लिए शुक्रिया!

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  7. बेहतरीन रचना । इस पर टिप्पणी की योग्यता नहीं हमारी ।

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  8. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    इसे 11.07.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  9. दलीलों के लिए तो सैकड़ों पहलू भी हैं लेकिन
    जो सोचूं तो मुझे अच्छा बुरा सब याद आता है
    तुम्हारी पसंद की दाद देनी पड़ेगी...इतनी ख़ूबसूरत ग़ज़ल पढवाने का शुक्रिया

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  10. वंदना जी ! इतनी खूबसूरत गज़ल छंट ली आप शहीद जी के पिटारे से ...बेहद सुन्दर है ..शुक्रिया यहाँ हमारे साथ बांटने के लिए.

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  11. लिया है काम ऐसे भी सियासत ने अकायद से.,
    उठाने हों अगर फ़ितने तो मज़हब याद आता है.

    बहुत सच्ची बात कही है..
    शाहिद जी की इस खूबसूरत गज़ल पढवाने का शुक्रिया.

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  12. हर इक इंसान उलझा है यहां अपने मसाइल में
    परेशां और भी होंगे किसे कब याद आता है
    वंदना जी इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए आभार शाहिद मिर्ज़ा कि गज़लें होती ही लाजवाब हैं

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  13. अच्छी पसन्द है भई आपकी । अच्छा लगा ।

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  14. वाह ! गज़ल बहुत खूब कही है.
    बहुत अच्छी पसंद है आप की..]

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  15. बहुत बढ़िया लगा! शानदार पोस्ट!

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  16. मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

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  17. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  18. मासूम भाई, साढे तीन महीने बाद इस पोस्ट की तरफ़ रुख़ करने के लिये धन्यवाद. मुझे शाहिद साहब की अधिकांश गज़लें पसंद हैं. भविष्य में शाहिद मिर्ज़ा साहब की कुछ और बेहतरीन गज़लें अपने इसी कॉलम के अन्तर्गत पोस्ट करूंगी, उम्मीद है, आपको पसंद आयेंगीं. हमें और आपको भी तो तारीफ़ सुनने की आदत पड़ गई है मासूम भाई, ज़रा सी भी बेरुख़ी हम बर्दाश्त कर पाते हैं क्या?

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  19. अरे वाह वंदना ये तो ख़ुशख़बरी सुनाई तुम ने कि तुम शाहिद मिरज़ा साहब की औए ग़ज़लें भी पोस्ट करने वाली हो ,अच्छे शोअरा का कलाम मंज़रे आम पर आना भी चाहिये,तुम ने बिल्कुल सही शायर को चुना है ,मुझे उन ख़ूबसूरत ग़ज़लों का इंतेज़ार रहेगा ,बहुत बहुत शुक्रिया

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  20. वंदना जी मैंने अपना कमेन्ट निकाल दिया है, क्योंकि शायद मेरा नजरिया आप से यहाँ नहीं मिलता. आशा है आप ऐसे ही लोगों के अच्छे कलाम सब के सामने लाती रहेंगी.

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