सोमवार, 26 अगस्त 2019

भदूकड़ा- (भाग-6)

(अब तक आपने पढ़ा......
सुमित्रा जी यानी सीधी सरल महिला. लेकिन उनके जीवन में उनकी ही बहन कुन्ती ने उथल-पुथल मचा दी. तरह तरह के नुस्खे आजमाती कुन्ती और उन्हें झेलती सुमित्रा. आइये पढ़ें इन बहनों की ज़िन्दगी से जुड़े अन्य किस्से और शान्त करें अपनी जिज्ञासा)

अज्जू ने आनन-फानन सुमित्रा जी की फ़ेसबुक आईडी बना दी, और घर के तमाम रिश्तेदारों के पास उनका मित्रता अनुरोध भेज दिया. कुछ लोगों ने, जो उस वक़्त ऑनलाइन रहे होंगे, दनादन अनुरोध स्वीकार कर, सुमित्रा जी की वॉल पर चमकना भी शुरु कर दिया. सुमित्रा जी ये अजूबा देख अचम्भित थीं और प्रसन्न भी. परिवार के लड़के-बच्चों को पहचान-पहचान के किलक रही थीं. मज़े की बात, पूरे खानदान का काम फ़ेसबुक पर तस्वीरें पोस्ट करना ही था, सो पल-पल की तस्वीरें अब सुमित्रा जी को मिल पा रही थीं. किशोर दादा की वॉल पर कुंती, कवर फोटो बनी चमक रही थी. तस्वीर पुरानी थी, उतनी ही पुरानी, जितनी सुमित्रा जी की यादों को फ़िर हवा दे दे.....!

तस्वीर में कुन्ती के गले में वही मोटी चेन दमक रही थी, जो सुमित्रा जी को उनकी अम्मा ने अज्जू के जन्म पर दी थी, और जो ससुराल आने के दूसरे ही दिन ग़ायब हो गयी थी....!
अब आप सोचेंगे कि सुमित्रा जी अपनी ससुराल गयीं, तो वहां चेन ग़ायब हुई. हम कुन्ती को क्यों बीच में फ़ंसा रहे? लेकिन भाईसाब, हम फ़ंसा नहीं रहे, वे तो खुद ही फ़ंसी-फ़साईं हैं. हुआ यूं, कि बड़की बिन्नू के जन्म के बाद सुमित्रा जी की अम्मा ने कुन्ती को भी सुमित्रा के साथ भेज दिया था, मदद के लिये. चेन ग़ायब हुई तो अतिसंकोची सुमित्रा जी ने ये बात केवल कुन्ती को बताई और कुन्ती ने उसका बतंगड़ बना दिया. खूब रोना-धोना मचाया कि चेन हमने चुरा ली क्या? कुन्ती की बुक्का फ़ाड़ रुलाई से घबराई सुमित्रा जी ने किसी प्रकार उन्हें चुप कराया. भरोसा दिलाया कि वे कुन्ती पर शक़ नहीं कर रहीं. बाद में ये चेन सुमित्रा जी ने कुन्ती के बक्से में देख ली थी, रूमाल में लिपटी हुई, लेकिन उन्होंने कहा कुछ नहीं. और कुन्ती की बेशर्मी देखिये, वही चेन पहने फोटो भी खिंचवा ली!!
ऐसे एक नहीं, सैकड़ों वाक़ये हैं. कुछ ख़ास-ख़ास हम गिनायेंगे भी, लेकिन पहले ये तो जान लीजिये कि कुन्ती, तिवारी जी की भाभी कैसे हो गयीं? किस ग़लती के बारे में सुमित्रा जी सोच रही थीं?                                             
 तो हुआ यों, कि सुमित्रा जी के ससुराल पहुंचने के दो साल बाद ही, उनकी जेठानी का देहान्त हो गया. इतनी कच्ची उमर में उनका जाना सबको हिला गया. जेठ जी भी बिल्कुल नई उमर के थे. दो छोटी-छोटी बच्चियों की ज़िम्मेदारी...। परिवार वालों ने बहुत समझाया, तब जा के जेठ जी माने. उधर कुन्ती भी ब्याह लायक़ हो गयी थी, लेकिन एक तो उसका रंग-रूप, दूसरा स्वभाव और उस पर कुंडली में बैठा मंगल! सुमित्रा की शादी जितनी आसानी से हुई थी, कुन्ती के लिये पांडे जी को उतना ही परेशान होना पड़ रहा था. पंडित जी ने कहा था कि या तो लड़का भी मंगली हो या फिर विधुर हो. ऐसे में सुमित्रा जी को लगा कि यदि कुन्ती का ब्याह जेठ जी से हो जाये, तो पिताजी की परेशानी तो दूर होगी ही, कुन्ती को भी एक बेहद सज्जन पति और प्यार करने वाली ससुराल मिल जायेगी. हम दोनों बहनें यहां मिलजुल के रहेंगीं. ये सोचते हुए सुमित्रा जी भूल गयीं, कि कुन्ती और उनके साथ मिलजुल के रहेगी!!! बस यहीं मात खा गयीं सुमित्रा जी. घर में जब छोटी काकी से सुमित्रा जी ने इस सम्बन्ध की बात चलाई तो पूरा परिवार सहर्ष तैयार हो गया, क्योंकि उनके मन में तो सुमित्रा जी की छवि बैठी थी. सबने सोचा, ऐसी ही छोटी बहन भी होगी! जेठ जी भी इसी मुगालते में हां कह बैठे. आनन-फानन ब्याह की तैयारियां होने लगीं दोनों तरफ़.
(क्रमश:)

9 टिप्‍पणियां:

  1. कहते हैं खून का रिश्ता खून का ही होता है, ... अर्थ तो और भी होंगे कुंती की तरह

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  2. इतनी देर में नई किश्त नहीं चलेगी। पिछला सारा भूला जाता है।

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  3. जब रिश्ते पसरने लगें और दायरे सिमटने लगें.....

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  4. अब नहीं रहा जा रहा जल्दी करो

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