गुरुवार, 29 अगस्त 2019

भदूकड़ा (भाग-आठ)


(अब तक: 

सच्चाई जानने के बाद बड़के दादा ने तिवारी को बुला भेजा. इस अचानक बुलावे ने तिवारी जी को संशय में डाल दिया. घर आ के भी तिवारी जी को कुछ खबर न लगी कि हुआ क्या? बस सुमित्रा जी को आनन-फ़ानन साथ ले जाने का आदेश हो गया. अब आगे-)



’दादी...... कब से ढूंढ रहां हूं आपको. आज लूडो नहीं खेलेंगीं क्या?’
चन्ना की आवाज़ पर चौंक सी गयीं सुमित्रा जी. देखा हाथ में अब तक वही गरुड़, यानी पूजा की घंटी लिये बैठी हैं, धीरे-धीरे बजाती हुईं.
’येल्लो दादी! अब तक आप भजन ही कर रहीं? अरे उठिये न प्लीज़..... मैने पूरा गेम सजा लिया है, बस आपको वहां तक चलना है. सुमित्रा जी के हाथ से घंटी छुड़ा के भगवान के पास रखते हुए चन्ना ने उनका हाथ पकड़ के उठाने की कोशिश की. भारी शरीर की सुमित्रा जी काहे को उठ पातीं छह साल के चन्ना से? चन्ना के साथ बैठीं सुमित्रा जी, चन्ना में अज्जू को देख रही थीं..... अज्जू, जब एक साल का रहा होगा, तब गरुड़ में दूध भर के पीने की ज़िद पकड़ बैठा. उधर चक्की पर अनाज पीसने की बारी अब सुमित्रा जी की ही थी, तो वे भी हड़बड़ी में थीं, कि अज्जू जल्दी से दूध पी ले, तो वे काम पर लगें. लेकिन इधर उन्होनें कटोरी से दूध गरुड़ में डाला, उधर कुन्ती प्रकट हो गयी! फिर तो जो बवाल हुआ उसका क्या कहें! उस घंटी को लिये-लिये कुन्ती पूरे घर में घूमी.... और अन्त में पीछे वाले आंगन के कुंएं में फ़ेंक के आ गयी. घर के बड़े बूढ़े सुमित्रा को जाने कितने दिनों तक धर्म-कर्म की बातें सिखाते रहे थे.....! और सुमित्रा बस घूंघट के अन्दर आंसू बहाती रहती.
अचानक ही पहुंचे तिवारी जी को देख छोटी कक्को अचरज में पड़ गयीं.
’अरे छोटे? तुम कैसें आ गये? तबियत तौ साजी है न? उखार-बुखार तौ नइयां? बड़े, देखियो तनक. कौनऊ दिक्कत तौ नइयां छोटे खों.’
’आंहां छोटी कक्को. छोटे हां हमने बुलाओ तो. कक्को, घर में जौन कछु हो रओ, बा तौ तुम देखई रईं. छोटी बहू के लाने तौ मुसीबत ठांड़ी हर कदम पे. बा कछु करे तौ औ न करे तौ, दोष तौ लगनेई लगने है. सो हमने सोची कि इत्ती पढ़ी-लिखी मौड़ी, इतै काय हां गोबर लीपै, उतै छोटे के पास जा के पढ़ाई कर ले. फिर छोटे खों दिक्कत तो होत है, बौ कहत नइयां.’ बड़े दादा ने अपनी मंशा ज़ाहिर की. लेकिन छोटी कक्को भड़क गयीं. बोलीं-
’ऐसो छोटो-मोटो झगड़ा झंझट तौ चलत रात. हम तौ जानत हैं न छोटी दुल्हिन हां? सो तुम चिन्ता जिन करौ. ऊए नईं भेजने कऊं.’
लेकिन बड़े दादा कुन्ती को बहुत अच्छी तरह पहचान गये थे. वे अपनी ज़िद पर अड़े रहे, कि सुमित्रा तो जायेगी ही जायेगी.
 अगले दो दिन में सुमित्रा की तैयारी कर दी गयी. सुमित्रा के जाने की बात से सब दुखी थे. सबसे ज़्यादा दुख तो कुन्ती को ही था, क्योंकि अब तो सुमित्रा इस भरे-पूरे परिवार से आज़ाद हो, अकेली रहने जा रही थी! कुन्ती सोचती, दांव उल्टा पड़ गया क्या? छोटी कक्को तो बाक़ायदा आंसुओं सहित रो रही थीं. सुमित्रा ही कहां खुश थी? उसे भी सबका साथ ही प्यारा था. उस ज़माने में वैसे भी बहुंएं अकेलेपन से घबराती थीं. लेकिन क्या किया जाये? जाना तो था ही. बड़े दादा ठान चुके थे. सुबह सुमित्रा को जाना था और दिन भर छोटी कक्को परेशान रहीं, कि क्या-क्या न बांध दें उसके साथ. मीठे पुए, नमकीन पूरियां, मठरी, शकरपारे, बेसन के लड्डू, शुद्ध घी, भरवां करेले इतने कि दो-चार दिन तक चलते रहें. सत्तू, गेंहू का आटा, दलिया, दालें....... तब भी उनका मन न भरता, थोड़ी देर में एक पोटली और बढ़ जाती सामान में. तिवारी जी झुंझला रहे थे कि इतना सामान ले कैसे जायेंगे? लेकिन बड़के दादा ने उसका भी इंतज़ाम कर दिया. गांव से घर के ट्रैक्टर में जायेगा सारा सामान, जीप में बच्चे-बहू आदि. झांसी पहुंच के फ़िर वहां से ट्रेन में चढ़ा दिया जायेगा बहू, बच्चों और तिवारी जी को. सामान ट्रैक्टर से ही पहुंच जायेगा ग्वालियर. आखिर दूरी ही कितनी है झांसी से ग्वालियर की?
(क्रमश:)
 तस्वीर: गूगल सर्च से साभार



    


11 टिप्‍पणियां:

  1. कहानी ने अब गति पकड़ी है। आंचलिक भाषा के तड़के ने रोचकता ला दी शिल्प में।

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  2. abhi to jhansi se gwalior ki tractor yaatra, tractor ka pahiya puncture hone fir kuchh saamaan kam pahunchna aur kunti ke kamre me paayaa jana . abhi to kahani me aage khoob locha he . dekhte he kalpnasheelta kahan pahunchaati he is kahani ko .

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  3. उत्सुकता बढ़ती जा रही है,अब तो बस ग्वालियर पहुँचने पर क्या उथल पुथल मचेगी,कथानक में क्या मोड़ आएगा,बस नम्बर 9 का बेसब्री से इंतजार है।।

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  4. रोचक चल रही कहानी ।भदुकड़ा का अर्थ कहानी पढ़ते हुए पता चला । कुंती मानसिक रोग से ग्रस्त है अब देखना ये है कि ये सब कैसे सामने आता है । वैसे ये नवां भाग होना चाहिए था लेकिन आप छोटे छोटे भाग पोस्ट कर रहीं तो आठवां ही मान लेते हैं ।

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  5. अरे जल्दी से अगला भाग पोस्ट करो।

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  7. बहुत ही सुंदर कहानी ,किसी भी रचनाकार की नई पोस्ट आने या डलने की खबर मुझे नही होती ,इसी कारण से समय से जा नही पाती ,आज यू ही देखने चली आई कि कोई नई पोस्ट तो नही डली है ,देखा तो कई पोस्ट डल चुकी है ,जल्दी जल्दी पिछले पोस्ट को पढ़ी क्योंकि उसे पढ़े बिना आगे की कहानी समझ नही आती ,

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