गुरुवार, 21 मई 2009

अज्ञात

यादों की नागफनी सी चुभती रात,
होंठों पर पथराती अंतस की बात।
सब कुछ विष बोरा सा ,सब कुछ बदरंग,
ख़त्म नहीं होता है , दर्द का प्रसंग।
( यह रचना भी बुद्धिनाथ मिश्र की है, जो याद रहती है.)

11 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी पंक्तियाँ हैं।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. वाह वंदना जी कितनी सुन्दर कविता है! बहुत खूब!

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  3. श्यामल जी, अरुणा जी, किशोर जी, बहुत-बहुत धन्यवाद. कुछ पंक्तियां या रचनायें अविस्मरणीय होती ही हैं.

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  4. Again....only few lines but very sharp n effective. Bahut acha likha hai...

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  5. The day i'll find it, I swear, will definetly let you know......just kidding.

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