मंगलवार, 17 मार्च 2009


तिलक-होली
होली बीते छह दिन हो गये, लेकिन बात है कि दिल से जाती ही नहीं.... असल में बात "तिलक-होली" से सम्बंधित है.. मध्य-प्रदेश का जल-संकट अब जग-ज़ाहिर है, नये सिरे से बताने की बात नहीं. इसी जल-संकट के मद्देनज़र प्रदेश सरकार होली के दस दिन पहले से तिलक-होली का राग अलाप रही थी. प्रदेश के सभी अखबारों में बडी-बडी अपीलें-केवल तिलक लगायें-जल बचायें छाये हुए थे. अच्छा ही लगा...भीषण जल संकट से जूझने वाले सतना शहर के लिये तो ये ज़रूरी भी है कि पानी की हर बूंद बचाई जाये. होली के दिन उम्मीद थी कि शास्कीय जल प्रदाय शायद केवल एक घंटे को हो... लेकिन गज़ब तो तब हुआ जब सुबह सात बजे से लेकर दोपहर दो बजे तक पानी की सप्लाई होती रही. शहर के सैकडों टोंटी रहित सार्वजनिक नल नाली में बेशकीमती जल बहाते रहे.... क्या तिलक होली की सार्थकता तब नहीं होती, जब पानी नियत समय के बाद सप्लाई ही न किया जाता?? ये कैसा पानी बचाओ अभियान है???

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब कहा है आपने वस्तुतः हम अपने समय को नकार रहे हैं और संकट भी खुद ही हैं ! आपकी पोस्ट बहुत अच्छी लगी बधाई !

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  2. thik kaha aapne, sirf kahne se kuch nahi hota.
    aise log akal ke dushman hote hai
    jo sab dushmano me sab se bada hota hai...

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