गुरुवार, 19 मार्च 2009

वातावरण
धुन्ध का वातावरण है इन दिनों,
खौफ़ में सारा जहां है इन दिनों।
ढूंढ्ने से भी अब नहीं मिलता इंसां,
जानवर की खाल में सब इन दिनो।
रात सपने में सच आया,
झूठ से वह डर गया है इन दिनों।
जा रहे थे हम तो सीधे ही मगर,
खुद को चौरस्ते पे पाया इन दिनों।
कर रहे थे बरसों से हिफ़ाजत जिनकी हम,
दुश्मनों की भीड में उन को भी पाया इन दिनों।
आज ज़रा जब गौर से देखा खुद का चेहरा,
शक्ल अनजानी लगी है इन दिनों।
कितनी बातें, कितनी यादें ज़ेहन में दफ़्ना दी हैं,
अब तो उन की लाश बची है, इन दिनों।
सोचा था यादों के पंछी पिंजरे में रख लूंगी मैं,
लेकिन देखा कानूनों की,धूम मची है इन दिनों.

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